कुछ दिन भरमा कर चला गया
नहीं बीतते थे दिन जिस बिन ,वो
लत अपनी लगा कर चला गया
नहीं बीतते थे दिन जिस बिन ,वो
लत अपनी लगा कर चला गया
बच्चों सी निश्छल वो आँखें
घर के हर कोने में झांके
बच्चाें का था हमसाया वो
सब मोह तोड़ कर चला गया
घर भर का वो प्यारा 'ड्यूकी'
कोई कैसे भूले शरारतें उसकी
हम सबकी जैसे जान था तू
क्यूँ बना दो दिन का मेहमान तू
कैसे असमय छोड़ कर चला गया
वो आया था दिल बहलाने
मुस्कान होंठों पे सबके सजाने
आंसू आंखों में भर गया
दिल लूट के हमेशा को वो चला गया
खुश्बू उसकी, यादें उसकी
घर-आंगन भर बातें उसकी
आहट है हर सू उसी की
आंखों में बस तस्वीर उसी की
मन की माला फेर गया वो
दर्द सीने में उकेर गया वो
सुबह-ओ-शाम का सूरज सा वो
क्योँ अन्धकार बिखेर गया
गया ऐसा कि अब न आएगा
गोद में किसी के मुंह न छिपाएगा
हर दिन सबको रूलाएगा
याद अपनी उम्र भर दिलाएगा
सब को रूलाकर चला गया
कुछ दिन भरमाकर चला गया।
दिल लूट के हमेशा को वो चला गया
खुश्बू उसकी, यादें उसकी
घर-आंगन भर बातें उसकी
आहट है हर सू उसी की
आंखों में बस तस्वीर उसी की
मन की माला फेर गया वो
दर्द सीने में उकेर गया वो
सुबह-ओ-शाम का सूरज सा वो
क्योँ अन्धकार बिखेर गया
गया ऐसा कि अब न आएगा
गोद में किसी के मुंह न छिपाएगा
हर दिन सबको रूलाएगा
याद अपनी उम्र भर दिलाएगा
सब को रूलाकर चला गया
कुछ दिन भरमाकर चला गया।
6 comments:
अपनत्व की भावना तो उमड़ ही पड़ती है किसी के साथ होने..रहने से । मन दुखी हो जाता है किसी के असमय साथ छोड़ कर चले जाने से
सच कहा आपने किसी का और इतने मासूस से प्यारे से की जुदाई बहुत ही दुखदायी होती है
जिसको प्रेम करो वो चला जाये तो दुःख बहुत होता है ... चाहे जानवर ही क्यों न हो ... अपनी मूक भाषा में वो अपना प्रेम जतलाता जो है ..
सुन्दर कविता
सुन्दर रचना
ओह!
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