Tuesday, September 27, 2016

वि‍श्‍व पर्यटन दि‍वस की बधाई मि‍त्रों...




बादल.. उतर आओ नीचे
मेरी सीमाएं पहचानो
एक बार गले लगो, चले जाओ
मुझको ढांप लो अपने आगोश में
मैं पर्वत हूं
बस तुम्‍हें है अख्‍ति‍यार
उतर आओ, छू जाओ
कोई नहीं आता इस शि‍खर में
अकेला खड़ा हूं
थोड़ा अपनापन तो मुझकाे दे जाओ....










धरती ने ओढ ली हरी चादर
मन भी देखो
हरा-हरा सा है 

5 comments:

अजय कुमार झा said...

वाह आज के दिन की एक खूबसूरत और नयनाभिराम पोस्ट | बहुत सुन्दर

Parul kanani said...

bahut accha likha hai

Onkar said...

बहुत सुन्दर

दिगम्बर नासवा said...

प्राकृति को शब्दों का हार पहना दिया ...

Unknown said...

Bahut sundar