Wednesday, September 21, 2016

उलझी सी है जिंदगी


बड़ी उलझी सी है जिंदगी करती हूं बार-बार बेतरतीब सी इस जिंदगी की तह लगाने की कोशि‍श
जानते हुए भी कि पल्‍लू में पानी नहीं बंधते इंसान और उनकी फि‍तरत कभी नहीं बदलती

4 comments:

डॉ. दिलबागसिंह विर्क said...

आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 22-9-2016 को चर्चा मंच पर दिया गया है
धन्यवाद

संजय भास्‍कर said...

बहुत ही शानदार........दिल को छूती पंक्तियाँ ।

MANOJ KAYAL said...

बहुत सुन्दर

MANOJ KAYAL said...

बहुत सुन्दर