तम अंधियारे का हर ले तू जोत जला नई कोई ।।
सतरंगी चुनरी ओढ़ प्रकृति अब वसुधा पर सोई ।।
नीलगगन से गागर छलकी बूंदों से अमृत बरसा ।
उजियारी पावन बेला में मन जले दीप सा हरसा ।
कालनिशा सी देख निराशा जाके दूर कहीं खोई ।
सतरंगी चुनरी ओढ़ प्रकृति अब वसुधा पर सोई ।।
शुभ्रदीप की नवल ज्योत्स्ना आशा भर भर लाई ।
नई फसल ने घूंघट खोल भरे खेत में ली अंगड़ाई ।
स्वर्ण भास्कर की किरणों से दैन्य रहा ना कोई ।
सतरंगी चुनरी ओढ़ प्रकृति अब वसुधा पर सोई ।।
सतरंगी चुनरी ओढ़ प्रकृति अब वसुधा पर सोई ।।
नीलगगन से गागर छलकी बूंदों से अमृत बरसा ।
उजियारी पावन बेला में मन जले दीप सा हरसा ।
कालनिशा सी देख निराशा जाके दूर कहीं खोई ।
सतरंगी चुनरी ओढ़ प्रकृति अब वसुधा पर सोई ।।
शुभ्रदीप की नवल ज्योत्स्ना आशा भर भर लाई ।
नई फसल ने घूंघट खोल भरे खेत में ली अंगड़ाई ।
स्वर्ण भास्कर की किरणों से दैन्य रहा ना कोई ।
सतरंगी चुनरी ओढ़ प्रकृति अब वसुधा पर सोई ।।
दिव्य देव सब प्रकट हुए है इस पावन रुत में ।
उपवन में जा कर रम जा पूरब की मारुत में ।
इंद्रधनुष ने बादलों में मद केसर क्यारियां बोई ।
सतरंगी चुनरी ओढ़ प्रकृति अब वसुधा पर सोई ।।
सुमन अनगिनत खिले चतुर्दिश मनमलिन हरने ।
परबतों के पत्थर सीने पिघल बन गए झरने ।
सुवर्णजुही बोने को देख आया माली नवल कोई ।
सतरंगी चुनरी ओढ़ प्रकृति अब वसुधा पर सोई ।।
तम अंधियारे का हर ले तू जोत जला नई कोई ।।
सतरंगी चुनरी ओढ़ प्रकृति अब वसुधा पर सोई ।
1 comment:
हां बहुत सुंदर भाव रश्मि जी बहुत ही प्यारी पंक्ति मनमोहक पोस्ट बहुत बहुत शुभकामनाएं आपको शुक्रिया
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