Monday, September 5, 2016

पहले वाली मोहब्‍बत....


तेरी यादों से कर भी लूं
तुझसे कैसे करूं
वो पहले वाली मोहब्‍बत

तू चला गया था जि‍स रोज
मुझको मेरे हवाले करके
तौबा कि‍या था चांदनी रातों
और
उस सुहानी शाम से भी
जो ढलते हुए रोज़,
बेक़़रार करती थी मुझको

महबूब के कदमों में है
जन्‍नत
पुरानी कहानी कहती है
यादों के सूत पि‍रो हरदम
न जा, रूक जा

मैंने कर दि‍या सबको सलाम
कर ली है
दहकते सूरज से अब मोहब्‍बत
बोलो जरा

तेरी यादों से कर भी लूं
तुझसे कैसे करूं
वो पहले वाली मोहब्‍बत ?

तस्‍वीर- ढलती शाम की

5 comments:

yashoda Agrawal said...

आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 07 सितम्बर 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

Unknown said...

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (07-09-2016) को हो गए हैं सब सिकन्दर इन दिनों ...चर्चा मंच ; 2458 पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

Unknown said...

अब क्या कहें इन भावुक पंक्तियों के लिए.

मोहब्बत की है बेइंतेहा तेरी यादों से मगर
काश तुझे जानने की फुरसत होती.

अभिनन्दन।

कविता रावत said...

सच लाख कोशिश करो पहली मोहब्बत कोई नहीं भूल पाता ..

Arun sathi said...

यादों से ही सही...