Tuesday, August 16, 2016

अवि‍स्‍मरणीय गीत....


सबने कहा
अब जाकर मैंने गाया
अपने जीवन का सबसे सुंदर गीत
दरअसल वो
मेरा मौन रूदन था
छलनी दि‍ल से नि‍कलती धुन
जो कहलाया दुनि‍या का सुंदरतम गीत

यह उपजा था
प्‍यार के सात रंगों के आने और
दर्द के समंदर के ठाठें मारने से

कैसी त्रासदी है
शरीर, मन और आत्‍मा की
अलग-अलग ख्‍वाहि‍शें होती हैं
एक दूसरे की इच्‍छा को दरकि‍नार करते

कोई रसायन
हृदय में उद्दीप्‍त करता है प्रेम
लगता है प्‍यार चरम पर पहुंचा
ठीक उसी क्षण
मस्‍ति‍ष्‍क देता है चेतावनी
यह अंति‍म क्षण है, बाद पल के सब समाप्‍त

जि‍ओ, समेटे हर संवेदना
फि‍र बि‍ंध जाओ शूलों में
नि‍यति‍ यही है, परि‍णति‍ भी यही
जीवन का
एक गीत तो खूबसूरत धुनों से सजा रहे
सबसे यादगार पलों की नि‍शानी

सब तजने से पहले
एक कटार सीने में अपने ही हाथों चुभोना
आत्‍मा को बदन से अलग करने के ठीक पहले
एक चीख उभरेेगी,  प्रेम और दर्द में लि‍पटी
जो बन जाएगी
दुनि‍या के लि‍ए अवि‍स्‍मरणीय गीत।

रावणहत्‍था बजाती मैं....

4 comments:

डॉ. दिलबागसिंह विर्क said...

आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 18-8-2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2438 में दिया जाएगा
धन्यवाद

रश्मि शर्मा said...

Dhanyawad aapka

kuldeep thakur said...

जय मां हाटेशवरी...
अनेक रचनाएं पढ़ी...
पर आप की रचना पसंद आयी...
हम चाहते हैं इसे अधिक से अधिक लोग पढ़ें...
इस लिये आप की रचना...
दिनांक 19/08/2016 को
पांच लिंकों का आनंद
पर लिंक की गयी है...
इस प्रस्तुति में आप भी सादर आमंत्रित है।

kuldeep thakur said...

जय मां हाटेशवरी...
अनेक रचनाएं पढ़ी...
पर आप की रचना पसंद आयी...
हम चाहते हैं इसे अधिक से अधिक लोग पढ़ें...
इस लिये आप की रचना...
दिनांक 19/08/2016 को
पांच लिंकों का आनंद
पर लिंक की गयी है...
इस प्रस्तुति में आप भी सादर आमंत्रित है।