कुछ शब्द घिसते हैं
कुएं के पाट पर लगे पत्थर से
रोज ही
फिर भी बोलते हैं हम
कुएं के पाट पर लगे पत्थर से
रोज ही
फिर भी बोलते हैं हम
आदतन
जैसे पाट पर रखते ही
रस्सी ढूंढ लेती है
रगड़ी गई जगह
जहां से सुविधा हो उसे
तल तक जाने की
रस्सी ढूंढ लेती है
रगड़ी गई जगह
जहां से सुविधा हो उसे
तल तक जाने की
वैसे ही
कुछ शब्द, घिसे होते हैं
रगड़ खाए भी
मगर बोलते हैं हम
संबंधों की सहुलियत के लिए
रगड़ खाए भी
मगर बोलते हैं हम
संबंधों की सहुलियत के लिए
जहां
असत्य सही, ध्वनित हो
एक अनुराग
और हम रिश्ते की बाल्टी में
भर लाएं, कुछ बूंद पानी के।
असत्य सही, ध्वनित हो
एक अनुराग
और हम रिश्ते की बाल्टी में
भर लाएं, कुछ बूंद पानी के।
तस्वीर....गांव में एक कुएं की, जहां स्त्रियां कपड़े धो रही हैं....
1 comment:
Waaaah bht hi badhiya.....
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