Saturday, July 16, 2016

सखि‍यां



ओ सखि‍यां, गुड़ की डली सी लागे मीठी तोरी बति‍यां
दि‍न चि‍ड़ि‍यां बन उड़ जाएंगे, हम कैसे ये दि‍न भुलाएंगे



2 comments:

Onkar said...

सुन्दर पंक्तियाँ

दिगम्बर नासवा said...

नए परिवेश में जाकर पुराने दिन कहाँ भूलते हैं ... मीठी यादें रह जाती हैं ...