कई बरस हुए..एक मासूम सी लड़की के अंदर उसने एक जलनखोर स्त्री को रचा।बहुत भोली थी वो सहृदय, पर अब वो इसे कदर ईष्यालु हो गई कि उसके प्रेमी को कोई और देखे तो उसे सात पर्दे में छुपा ले, जो वो किसी और को देखे , तो जैसे उसकी आंखें निकला ले।
वो खुश था...प्रेम गली अति सांकरी
लड़की.....गुड़िया भीतर गुड़िया
एक दिन लड़की ने जाना कि वो हवाओं को रोकने का निरर्थक प्रयास करती आ रही है, उसका चाहनेवाला छलकता नहीं, क्योंकि हवा, पानी धूप से बरसों पुराना रिश्ता रहा है..
अब नि:संग है वो
लड़की छटपटाती है
गुड़िया अपने ही हाथोंं दे रही जहर दुसरी गुड़िया को, मार ही डालेगी अब उसे...जाने दोनों मरेंगे या कोई एक जीतेगा
सातों दरवाजे खुले हैं। अश्वमेघ का घोड़ा ऋषि के आश्रम में बंधा हुआ है। लड़की जानना चाहती है वानप्रस्थ गए आदमी को क्या कहते हैं....सन्यासी कैसा होता है...
स्त्री.....प्रेम में अपना वजूद क्यों मिटा देती है....है किसी के पास कोई जवाब...
तस्वीर...बारिश में भींगता गुलाब और छतरी से बचती-बचाती औरत
1 comment:
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " भ्रम का इलाज़ - ब्लॉग बुलेटिन " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
Post a Comment