Saturday, June 11, 2016

बाघा बार्डर से जालि‍यांवाला बाग तक....

दुर्गयाना मंदि‍र 

डलहौजी जाने की इच्‍छा कई वर्षों से मन में थी। मगर हर बार कहीं और का प्रोग्राम बन जाता था। इस बार तय कि‍या कि‍ बस यही जाना है, और पहाड़ों पर ही रहना है। इसलि‍ए सीधा पठानकोट तक की ट्रेन ली। वहीं से उतरकर हमें टैक्‍सी से लगभग 80 कि‍लोमीटर की दूरी तय कर डलहौजी पहुंचना था। मगर नि‍कलने के ठीक पहले कार्यक्रम में थोड़ा बदलाव आया। तय हुआ कि‍ स्‍वर्णमंदि‍र भी देखते हुए जाया जाए। इसके लि‍ए बस एक स्‍टेशन पहले हमें अमृतसर में उतरना होगा। एक रात वहां बि‍ताकर हम  अगले दि‍न डलहौजी के लि‍ए नि‍कल पड़ेंगे।
ट्रेन लेट थी। हम करीब 11 बजे के आसपास अमृतसर उतरे। कड़क धूप। सो हमलोग सीधे स्‍वर्णमंदि‍र के पास एक होटल लि‍ए ताकि‍ देर शाम को पैदल वहां जाकर बैठ सके। हमाारे मन में जालि‍यांवाला बाग देखने और बाघा बार्डर जाने की भी इच्‍छा थी। मगर इतनी तीखी धूप देख हि‍म्‍मत नहीं हो रही थी क्‍योंकि‍ वहां पर बीएसएफ और पाक रेंजर्स की रि‍ट्रीट सेरेमनी देखने हजारों लोग तीन बजे से जाकर बैठ जाते हैं और रंगारंग कार्यक्रम का आनंद लेते हैं।

दुर्गयाना मंदि‍र 

फि‍र भी हम नि‍कल पड़े ये सोचकर कि‍ कम से कम बार्डर तो देखकर आ जाएंगे। रास्‍ते में दुगिर्याना मंदि‍र भी गए। बहुत ही खूबसूरत मंदि‍र है। सरोवर के बीच।  इसे लक्ष्मीनारायण मंदिर के नाम से भी जाना जाता है और इसका निर्माण 20वीं शताब्दी में हरसाई मल कपूर द्वारा स्‍वर्ण मंदि‍र की तर्ज पर करवाया गया थाअगर धूप कड़ी न होगी तो और अच्‍छा लगता। मन में एक यह भी वि‍चार था कि‍ इतनी धूप में पर्यटक भी कम ही होंगे आज। शायद हम परेड देख लें।

जैसे-जैसे बार्डर पास आता गया मन में उत्‍साह का संचार होने लगा। भारत-पाक सीमा एक कि‍लोमीटर और लाहौर 23 कि‍लोमीटर दूर देखकर लगा, अरे पाकि‍स्‍तान बि‍ल्‍कुुल पास है। अभी चाहें तो तुरंत चले जाएं। मगर ये संभव नहीं। ठीक उसके पहले एक बढ़ि‍या होटल मि‍ला। नाम भी जगह के अनुसार 'सरहद रेस्‍टोरेंट'। नाशपाती के बाग के खत्‍म होते ही अटारी सीमा है।

भारत-पाकि‍स्‍तान सीमा 

वहां पहुंचे तो अफरा-तफरी सी मची थी। सब आगे जाने को उतावले दि‍खे। मेले सा माहौल। लोग दौड़ते नजर आए। कोई रि‍क्‍शे पर तो कोई पैदल। खोमचे वाले, पानी वाले और भी कई स्‍टाल लगे थे। बड़ी लंबी लाइन और सुरक्षा घेरा पार करने के बाद अंदर जाते लोग। पता लगा जबरदस्‍त भीड़ है। गर्मी बेअसर थी जैसे। लोग उत्‍साह में भरेे चले जा रहे थे। हम भी कुछ दूर तक गए। कि‍सी से पता लगा कि‍ आज इतनी भीड़ है कि‍ सारा स्‍टेडि‍यम भर गया है और लोग आते जा रहे हैं। 


अटारी बार्डर 

मगर हमारी हालत इतने में ही खराब हो गई। धूप बर्दाश्‍त नहीं हो रही थी हमसे। पास ही सीमा पर अंति‍म डाकघर भी है। कभी ठंढ़ में  फि‍रआएंगे ये मन ही मन सोचकर, सरहद पर एक नजर डाली और लौट गए। एक गांव के दो हि‍स्‍से अब दो देश कहलाते हैं। है दुखद मगर सत्‍य है। 



अटारी बार्डर पर पर्यटकाें की भीड़ 


वापसी में सीधे गए जालि‍यांवाला बाग। इति‍हास की कि‍ताबों में अंकि‍त सारी स्‍मृति‍ आंखों में कौंध गई। राॅलेट एक्‍ट, जनरल डायर, बैसाखी का दि‍न और सैकडों नि‍हत्‍थों पर गोलाबारी। आंखों में कोई फि‍ल्‍म रील से चल गई। जैसे ही अंदर गए, उस रास्‍ते पर एक तस्‍वीर ली, जो इकलौता रास्‍ताा था बाहर निकलने का जि‍से बंद कर गोलि‍यां चलवाई थी जनरल डायर ने और 13 अप्रैल 1919 का दि‍न काला दि‍न के रूप में इति‍हास में दर्ज हुआ था। 

जालि‍यांवाला बाग

छोटे बेटे ने पूछा कि‍ इस रास्‍ते में ऐसा क्‍या है कि‍ इसकी तस्‍वीर ले रही हो। तब उसे बताया सारा इति‍हास तो वह शांत होकर अंदर गया।
अंदर बेहद खूबसूरती से बाग का कायाकल्‍प कि‍या गया है। देखकर लगा नहीं कि‍ यह वो जगह है जहां 1650 राउंड गोलि‍यां चली थी। सबसे पहले उस कुएं तक पहुचे हम जहां सैकडों नि‍हत्‍थे जान बचाने के लि‍ए कूद गए और मारे गए थे। वहां अंकि‍ि‍त सूचना पट्ट पर लि‍खा है कि‍ उस कुएं से 120 श्‍ाव नि‍काले गए थे। उस दि‍न शहर में कर्फ्यू लगा था, इसलि‍ए घायलों का इलाज भी नहीं हो पाया और लोग तड़प-तड़प के मर गए। 



संकरा रास्‍ता जि‍से जनरल डायर ने बंद करवा दि‍या थाा


शहीदी कुआं, जि‍सेे अब घेर दि‍या गया है। 
दीवार पर गोलि‍यों के नि‍शान 
शहीदी कुएं के बगल में ही दीवार है जहां गोलि‍यों के 28 नि‍शान अंकि‍त है। यह हमें याद दि‍लाता है क्रूर नरसंहार। थोड़ी दूर पर लौ के रूप में एक मीनार बनाई गई है जहां शहीदों के नाम अंकि‍त हैं। उसके ठीक पीछे की दीवार पर भी गोलि‍यों के नि‍शान अब भी बीते जख्‍म को कुरेद जाते हैं। 


लौ के आकार की बनी स्‍मारक 
 कुछ देर वहां रहने के बाद हम वापस लौट गए होटल में। शाम को स्‍वर्णमंदि‍र में मत्‍था टेकने भी जाना था। 

14 comments:

  1. बेहतरीन वर्णन...

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  2. एक बार हमारे एक परिचित ने बीएसएफ और पाक रेंजर्स की रि‍ट्रीट सेरेमनी को सीडी में दिखाया था, तब से बहुत मन है देखने का। .. देखते हैं कब। आप देख नहीं पाये अफ़सोस तो होगा ही। . .. जलिया वाला बाग़ का नाम सुनकर ही मन सिहर उठता है ... आपकी आगे की यात्रा सुखद हो, यही कामना है। .आज हम भी आगरा और वृन्दावन की सैर के बाद दिल्ली जा रहे हैं। बच्चों को घुमाने-फिराने। फिर २० को उनके स्कूल खुल जाएंगे तो फिर वही दिनचर्या शुरू हो जानी हैं।

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  3. मन तो करता है कि पूरा आलेख चित्र सहित प्रकाशित कर दूँ ..पर मजबूरी इज़ाज़त नही दे रही सो इसका कुछ अंश कल "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 13 जून 2016 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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    1. Khusi hui ki aapko pasand aaya. Main jarur aaungi. Dhnyawad aapka.

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  4. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (13-06-2016) को "वक्त आगे निकल गया" (चर्चा अंक-2372) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  5. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (13-06-2016) को "वक्त आगे निकल गया" (चर्चा अंक-2372) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  6. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 13 जून 2016 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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  7. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " वकील साहब की चतुराई - ब्लॉग बुलेटिन " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  8. Crowning Glory wisely described with splendid photographa

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  9. बहुत सुदर वर्णन उस दुखद घटना की याद दिलाता हुआ।
    एक बार हम भी गये थे बाघा बॉर्डर नही, रणवीरसिगपुरा बॉर्डर वहाँ दोनो तरफ के सिपाही तैनात थे। मेरा बेटा तब छोटा था, दौड कर पाकिस्तानी इलाके मे चला गया एक पल को तो मेरी सांस अटक गई पर उन सिपाहियों ने बडे प्यार से उससे बात की और समझाकर वापिस भेज दिया।

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  10. बहुत खूब आपका यात्रा संस्मरण भी खूब है ....

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