Saturday, May 28, 2016

मोहब्‍बत और कुछ नहीं ....


चीड़ की दरख्‍़तों पर
जब चांदनी
छुपने की कोशि‍श कर रही थी
हरी घास के गलीचे से
नि‍कलकर जाती पगडंडि‍यों पर
एक रोज़
चखा था वर्जित फल का स्‍वाद
उस दि‍न
पेड़ से झड़ी सुनहरी पत्‍ति‍याें ने
सजाया था अनोखा बि‍स्‍तर
चांद पलकें झपकाकर देख रहा था
हमारा प्रथम चुंबन
जो आधा मेरे होठों पर रखकर
आधा अपने साथ लेकर चला गया था वो
फि‍र एक रोज पूरा करने का वादा देकर
दरख्‍़त से गि‍रती हर पत्‍ती
बरस दर बरस
मेरे कानों में यह कहती जा रही है
कि‍ जिंदगी
दि‍न है तो रात भी, मि‍लन है तो जुदाई भी
मोहब्‍बत और कुछ नहीं
बरस तक करो या जन्‍म भर,  नाम है इंतजार का,


तस्‍वीर...दो बरस पहले ली थी कौसानी की वादि‍यों में..




7 comments:

  1. जय मां हाटेशवरी....
    आप की रचना का लिंक होगा....
    दिनांक 29/05/2016 को...
    चर्चा मंच पर...
    आप भी चर्चा में सादर आमंत्रित हैं।

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  2. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 30 मई 2016 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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  3. बहुत सुन्दर ..
    प्यार में आस जगी रहती है इसलिए इंतज़ार लम्बा नहीं होता ..जिन्दा रहने के लिए प्यार जरुरी है....

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  4. दरख्‍़त से गि‍रती हर पत्‍ती
    बरस दर बरस
    मेरे कानों में यह कहती जा रही है
    कि‍ जिंदगी
    दि‍न है तो रात भी, मि‍लन है तो जुदाई भी
    मोहब्‍बत और कुछ नहीं
    बरस तक करो या जन्‍म भर, नाम है इंतजार का
    Bahut khoob

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  5. इंतज़ार सभी को है , न जाने क्यों .... शायद के हो जाने का , अच्छी पंक्तियाँ

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  6. समय निकाल कर मेरे ब्लॉग पर आने के लिए हार्दिक धन्यवाद।

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