(( सभी मित्रों को नवसंवत्सर और नवरात्र की बधाई व शुभकामनाएं ))
स्वर्ण आभा से युक्त जैसलमेर शहर |
हमलोग कई बरस पहले राजस्थान गए थे। जयपुर, पुष्कर और अजमेर। बहुत सुंदर लगा गुलाबी शहर। मगर रेत के धोरों को न देख पाने का मलाल रह गया था। यह इच्छा बरसों बाद फलीभूत हुई। इस सर्दी में हमने प्लान किया कि इस बार राजस्थान हो ही लें। मुझे सबसे ज्यादा इच्छा थी रेत देखने की। इसलिए सबसे पहले हमने स्वर्णनगरी जैसलमेर जाने की योजना बनाई ।
बात हुई कि जब जैसलमेर ही सबसे पहले जाना है तो सीधे वहीं की ट्रेन पकड़ी जाए, बजाए दिल्ली होकर जाने के। तो तय हुआ कि धनबाद से हर सोमवार एक ट्रेन सीधे जैसेलमेर जाती है, तो वहीं का टिकट कटा लिया जाए। हम खुश थे, उत्साह से भरपूर।
जिस दिन जाना था सुबह उठकर अपनी गाड़ी से धनबाद पहुंचे। वहां से दोपहर 12 बजे की ट्रेन थी। बहुत थोड़े वक्त के लिए वहां रूकती है ट्रेन, सो हम एहतियातन घर से जल्दी निकले। हमलोग समय से घंटे भर पहले पहुंच गए। वहां स्टेशन पर इंतजार किया और ठीक वक्त पर जैसलमेर के लिए निकल पड़े।
दिन भर पूरे उत्साह से गुजरा। शाम होते पता लगा की इस ट्रेन में पेंट्री कार नहीं है। लो, हो गई परेशानी।सबसे दिक्कत तो बच्चों को हुई। ऐसे ही कुछ-कुछ खाकर पेट भरा सबने।
शाम होते न होते अचानक तेज बुखार हो गया मुझे। सारा बदन टूट रहा था। मैं नीचे के बर्थ पर चादर तान सो गई। बुखार में पता नहीं कैसे इतनी नींद आ रही थी। मैं लगातार घंटों सोई रही। दुसरे दिन भी यही हालत थी। मैं पड़ी रही बुखार में तपती और बीच-बीच में बाहर के नजारे देखती रही।
दूसरे दिन रात 12 बजे के आसपास ट्रेन पहुचने वाली थी। आगे जाने के बाद तो भूख के मारे और भी हालत खराब हो गई। वातानुकूलित बोगी में कोई खोमचे वाला भी नहीं आया और रास्ते में पड़ने वाले स्टेशनों पर ट्रेन जहां जाकर रूकती थी, वो जगह मुख्य प्लेटफार्म से इतनी दूर होती थी कि , हमारा वहां से उतरकर खाना लाना संभव नहीं था। अब तो बड़ा अफसोस हुआ कि घर से ही कुछ पैक करा लाते। खैर जैसे-तैसे चिप्स और कोल्डड्रिंक्स के सहारे गुजारा किया।
ट्रेन के ऊपरी बर्थ पर शरारती मूड में बैठै अभिरूप |
दूसरे दिन रात 12 बजे के आसपास ट्रेन पहुचने वाली थी। आगे जाने के बाद तो भूख के मारे और भी हालत खराब हो गई। वातानुकूलित बोगी में कोई खोमचे वाला भी नहीं आया और रास्ते में पड़ने वाले स्टेशनों पर ट्रेन जहां जाकर रूकती थी, वो जगह मुख्य प्लेटफार्म से इतनी दूर होती थी कि , हमारा वहां से उतरकर खाना लाना संभव नहीं था। अब तो बड़ा अफसोस हुआ कि घर से ही कुछ पैक करा लाते। खैर जैसे-तैसे चिप्स और कोल्डड्रिंक्स के सहारे गुजारा किया।
ट्रेन चूंकि सुपरफास्ट थी, इसलिए समय पर हम ठीक 12 बजे जैसलमेर स्टेशन उतरे। राजस्थान का आखिरी स्टेशन या कहें कि भारतवर्ष का आखिरी स्टेशन , ट्रेन्स यहाँ आकर आगे नहीं जाती ,वापस पीछे मुडती है। इस के आगे पकिस्तान की सीमा आरम्भ हो जाती है। यह बात पहले कहीं पढ़ी थी सो उस जगह उतरते ही अजब सा रोमांच हो आया। अलसाई आधी रात ने इस रोमांच को और पंख दिए बच्चे इस लिए खुश थे कि अब किसी होटल में उन्हें उनका पसंदीदा भोजन मिल सकेगा। उम्मीद थी कि खूब सर्दी होगी वहां ,खासकर रातों को। सुन रखा था रेत के शहरों में दिन गर्म और रात उतनी ही सर्द। मगर वहां का मौसम बिल्कुल अपने शहर रांची जैसा ही था।
चूंकि हमने ऑनलाइन होटल बुक कर रखा था इसलिए जाकर होटल ढूंढने की चिंता भी नहीं थी। होटल से कोई स्टाफ पहले ही गाड़ी लेकर हमें रिसीव करने आया हुआ था।
छोटा, मगर साफ-सुथरा लगा शहर। रात की लाइट में पूरा शहर स्वर्णिम आभा से दमक रहा था। जितने होटल और घर दिखे..सबमें पीले पत्थरों की नक्काशी थी। पीले पत्थर , जिनको यहाँ की सोनल रेत अपने गर्भ में विकसित करती है । खामोश रात के विहंगम दृश्य से हम उत्साह से लबरेज हो उठे।
सूनी पड़ी हुई सड़कें ...सारा नज़ारा जैसे एक पीले बल्ब की रौशनी से नहाया हुआ कमरा सा लगा।
जब होटल पहुंचे तो बाहर से बेहद भव्य लगने वाला होटल अंदर से बिल्कुल साधारण महसूस हुआ। हमें लग गया कि आँनलाइन बुकिंग घाटे का सौदा है। मन खिन्न सा हुआ। मगर थकान इतनी थी कि कुछ सूझा नहीं। बस एक संतोष था कि इतनी रात पहुंचकर होटल तलाशने के झंझट से मुक्त रहे हम। हमने सादा खाना आर्डर किया और फ्रेश होकर हम सबने मिलकर खाना खाया। हम यानी मैं, मेरे पतिदेव और दोनों बच्चे।
फिर सब सोने चले गए। सुबह तरोताजा होकर सोनार किला देखने का रोमांच तारी था। पर मुझे देर तक नींद नहीं आई। जाने असंतुष्टि के कारण या सुबह घूमने जाने के रोमांच के कारण।
सुबह जरा देर ही नींद खुली। सबसे पहले हमलोग अपनी चाय लेकर छत भागे। वाकई स्वर्णनगरी लगी जैसलमेर। सुबह की धूप ने सुनहरी आभा बिखेर दी हो जैसे। जहां तक नजर गर्इ..सब सुनहरा। स्वर्णिम आभा वाला इमारती पत्थर वहां खूब पाया जाता है। नगर निगम ने पीले पत्थर की उपयोगिता अनिवार्य कर दी है,इसलिए सारा जैसलमेर स्वर्णनगरी कहलाने की योग्यता रखता है।
सोनार किले की बाहरी दीवार का सुबह और शाम का दृश्य |
हमारे होटल से सोनार किला बिल्कुल पास था। उसकी लंबी दीवार देख मन किया कि लगा दौड़कर चले जाएं। पता लगा कि वहां अभी जाने से कोई फायदा नहीं। बहुत धूप होगी और इतने बड़े किले को देखते-देखते वक्त निकल जाएगा।वैसे भी शाम की धूप में किला स्वर्ण सा चमकता है। इसलिए किले को तभी देखना ठीक होगा। बाकी चीजें नहीं देखा पाएंगे क्योंकि अगले दिन सम ढाणी की बुकिंग थी। इसलिए पहले से बुक कैब ड्राईवर हमें सबसे पहले गड़ेसर लेक लेकर गया।
कल जानेंगे गडेसर झील के बारे में ...............क्रमश:
मुझे ये संस्मरण दो माह पहले ही लिख लेना चाहिए था। देर हुई, तो आज नववर्ष के दिन मैं आप सभी साथियों के समक्ष रख रही हूं। आगे कुछ दिनों तक आप जैसलमेर, राजस्थान के बारे जानेंगे।
8 comments:
बहुत ही सटीक जीवंत लेखन सूंदर सजीव फोटोग्राफी
कमाल बस कमाल ।
जैसलमेर यात्रा मन में उत्सुकता जगा गयी...
.. बच्चों को तो खूब मजा आता ही है घूमने-फिरने में और साथ में शरारत करने में
. बहुत अच्छी लगी सचित्र यात्रा प्रस्तुति। .
आपको भी नवसंवत्सर और नवरात्र की हार्दिक शुभकामनाएं
आपको नवसंवत्सर और नवरात्र की हार्दिक शुभकामनाएं
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " दन्त क्रांति - ब्लॉग बुलेटिन " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
Thank u :)
Aapko bhi
Aapko bhi
सुन्दर चित्र और जीवंत वर्णन
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