जैसलमेर में सुबह सबसे पहले हम जिस जगह को देखने गए, वह था गडेसर झील।गडेसर झील रेलवे स्टेशन से दो किलोमीटर की दूरी पर है। इसे जैसलमेर के महारावल गडसी ने पीने के पानी के स्रोत के लिए बनवाया था।
हम अपने होटल से 10 मिनट के अंतराल में ही पहुंच गए वहां। ऐसा लगा पैदल भी आया जा सकता था। झील के ठीक पहले छोटा सा बाजार लगा हुआ था। राजस्थानी कपड़े, बैग, हस्तकला और नकली आभूषण। पर्यटकों की अच्छी खासी भीड़ थी। लोग आसपास राजस्थानी ड्रेस में फोटो खिंचवा रहे थे। इन्होंने मुझसे कहा कि चलो खिंचवा लो फोटो, पर मैंने मना कर दिया। अभी तो आए हैं। पहले घूमें फिर फोटो-शोटो होता रहेगा।
बच्चों ने जिद की कि नाव पर घूमेंगे। सो टिकट लेकर अंदर गए। हम लोग झील के किनारे से बंधी ,किंचित डगमगाती नाव में एक-एक कर बैठने लगे तभी एक महीन सी आवाज़ ने चौंका दिया “क्या मैं भी आप लोगों के साथ चल सकता हूँ “ अकबका कर मैंने देखा एक लम्बे बालों वाला पतला सा लड़का फिल्म स्टार्स वाले अंदाज़ में नाव में चढ़ने की फ़िराक में था ,मैंने एक दम से उसे रोकते हुए कहा “नहीं ...यह हमारे लिए बुक है “ लेकिन इस बात का उस पर कोई असर नहीं हुआ और वह उसी लापरवाही से चलता हुआ नाव के दूसरे छोर तक आ गया हम देखते ही रहे और उसने नाव के चप्पू थाम लिए , यह शाहरुख़ था जो अब शरारत से मुस्कुराते हुए कहने लगा “मैडम मेरे बिना चल न पाएगी ये नाव”. झील के किनारे किनारे दूर तक सीढ़ियां और चबूतरे थे। अंदर झील में छतरियां बनी हुई थी। संभवत: विशेष आयोजनों के समय इसका प्रयोग होता होगा। शाहरूख जो अब तक हमारा गाइड भी बन चुका था , ने बताया कि वहां आयोजनों में नर्तकियां नृत्य करती थीं और राजा उसका आनंद लेते थे।
वहां ढेरों कबूतर थे। छतरियों पर कबूतरों का जमावड़ा था। हमें उत्साहित देख अब शाहरूख भी मजे से बताने लगा कैसे कि यहां अनेक फिल्मों की शूटिंग हुई है। सरफारोश में नसरूद़दीन शाह यहीं बैठते थे। “दीदी आप एयर लिफ्ट फिल्म जरुर देखना अक्षय कुमार की है वो जब शूटिंग के लिए आया था तो मैंने ही उसे घुमाया इसी नाव” इस याद से उस की चमकती आँखों को देखकर उस की बात पर यकीन कर भी लिया हमने ।किनारे बने प्राचीन कोष्ठों में साधुओं के अस्थाई निवास का भी प्रबंध था, नर्तकियों और साधुओं के इस बेमेल जोड़ की कल्पना कर हमें हंसी भी आ रही थी ।
झील से किले की प्राचीर का विहंगम दृश्य |
वहां ढेरों कबूतर थे। छतरियों पर कबूतरों का जमावड़ा था। हमें उत्साहित देख अब शाहरूख भी मजे से बताने लगा कैसे कि यहां अनेक फिल्मों की शूटिंग हुई है। सरफारोश में नसरूद़दीन शाह यहीं बैठते थे। “दीदी आप एयर लिफ्ट फिल्म जरुर देखना अक्षय कुमार की है वो जब शूटिंग के लिए आया था तो मैंने ही उसे घुमाया इसी नाव” इस याद से उस की चमकती आँखों को देखकर उस की बात पर यकीन कर भी लिया हमने ।किनारे बने प्राचीन कोष्ठों में साधुओं के अस्थाई निवास का भी प्रबंध था, नर्तकियों और साधुओं के इस बेमेल जोड़ की कल्पना कर हमें हंसी भी आ रही थी ।
झील के किनारे पीले पत्थरों से बने भवन |
झील में बहुत सारी मछलियां थी और बाहर उनके लिए दाना भी बिक रहा था। झील के किनारे कई भवन और मंदिर बने हुए थे। पीले पत्थरों से बने भवन। शाहरूख ने बताया कि बाद के दिनों में इन कमरों में साधु निवास करते थे। वाकई मनभावन नजारा था। पीले पत्थरों से बने भवनों को हम मंत्रमुग्ध होकर देखते रह गए। फोटोग्राफी के लिए बहुत ही खूबसूरत जगह है गडेसर झील। झील से ही जैसलमेर किले की दीवार दिखती है।
अभी ठंड के दिनों में साइबेरियन क्रेन्स नजर आए हमें। झील के बीच जहां टापू जैसी जगह थी वहां सैकड़ों पक्षी बैठे थे। मैं उत्साहित होकर फोटो खींचने लगी। शाहरूख ने कहा “रूको दीदी...तैयार हो जाओ कैमरा लेकर” फिर उसने अपने मुंह से एक अजीब सी कोई जानवर जैसी आवाज निकाली और सारे पंक्षी उड़ने लगे। अदभुत दृश्य था। मैंने फटाफट कई खूबसूरत शॉट लिए।
बहुत खूबसूरत लगते हैं साईबेरियन क्रेन्स |
साधना में लीन अकेला कबूतर |
हमारा नाविक शाहरूख और छोटा बेटा अभिरूप |
अब हम चल पड़े पटुओं की हवेली की तरफ................क्रमश:
6 comments:
सुन्दर फोटोग्राफी और बेहतरीन वर्णन।
bahut sundar chitra,uttam varnan
राजस्थान का निवासी होने के नाते मैं एकाधिक बार जैसलमेर गया हूँ , इस बारे में कई यात्रा वृत्तांत भी पढ़े है परन्तु आपकी शैली लाजवाब हैं । बधाई ।
प्रतीक्षा है अगले अंक की ।
आप कैसा खूबसूरत कहने लगी हैं ... उचित ठहराव और आपके महसूस हुए की मुकम्मल तस्वीर नज़र आती है ... हमें हमेशा विश्वास था कि आप यहाँ पहुंचेंगी ... अहछे रिपोर्ताज लिखने सकने वाला इंसान बेहद अच्छे चित्र उकेर सकता है ... आपका कैमरा और आपके शब्द जुगलबंदी का माहौल बनाते है ... जीती रहें ...
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " आगे ख़तरा है - रविवासरीय ब्लॉग-बुलेटिन " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
sundar yatra.
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