अभी ऋतु परिवर्तन का वक्त है। चढ़ती गर्मी, चैत का माह। मैं किसी वजह से दो दिन पहले खूंटी जिले के एक गांव जा रही थी। दोपहर तपने लगी थी। कोलतार की चिकनी पर चलते हुए इधर-उधर नजारे देख रही थी। अभी पलाश खिले ही थे और अमलतास भी शोभायमान हो रहे थे सड़क किनारे।
अचनक मेरी नजर गई एक बड़े से आम के बागीचे में। दूर से लगा कुछ औरतें पेड़ की छांव में बैठी है। मैंने उत्सुकतावश गाड़ी रूकवाई और उनके पास जाने लगी। पास पहुंची तो देखा चार औरतें बैठी हैं और उनके सामने अल्मुनियम के दो बड़े-बड़े देगची हैं जिसे उन्होंने ढक रखा है। उसके ऊपर मध्यम आकार का कटोरा है। मेरे हाथ में कैमरा था। जब मैंने कैमरा उनकी तरफ किया तो उनमें से एक महिला उठकर भागने लगी, बाकियों ने आंचल से मुंह छुपा लिया।
मैंने कहा क्यों भागती हो। कुछ गलत कर रही हो क्या। कुछ नहीं करूंगी मैं। ड्राईवर ने भी स्थानीय बोली में समझाया कि ये सरकारी लोग नहीं मैडम जी लिखती हैं बस। इस आश्वासन पर वह निश्चिन्त हुई और बातें करने लगी पता लगा नाम है ‘तेतरी’ । उस की बडी सी देगची में ‘हंड़िया’ (चावल से बनने वाला पेय पदार्थ, जिससे नशा होता है ) भरा हुआ था जो वो आने-जाने वाले राहगीरों को पचास पैसे कटोरी के मोल पर बेचती थीं। साथ ही कुछ चना, चबेना भी था, जैसे लोग शराब के साथ चखना लेते हैं। अमीर भुने काजू और मूंगफली खाते हैं, गरीब भिगोया या अंकुराया चना। पता चला कि यही उस के परिवार की ‘आय’ का मुख्य स्रोत है , ‘तुम्हारा आदमी क्या करता है’ पूछे जाने पर एक हाथ माथे पर मारते हुए दूसरे हाथ से देगची की तरफ इशारा किया तेतरी ने , पल भर लम्बी इस शब्दहीन भाषा ने समझ दिया हमें, कि वह हंडिया के नशे के सिवा कुछ नहीं करता ।
मैंने कहा क्यों भागती हो। कुछ गलत कर रही हो क्या। कुछ नहीं करूंगी मैं। ड्राईवर ने भी स्थानीय बोली में समझाया कि ये सरकारी लोग नहीं मैडम जी लिखती हैं बस। इस आश्वासन पर वह निश्चिन्त हुई और बातें करने लगी पता लगा नाम है ‘तेतरी’ । उस की बडी सी देगची में ‘हंड़िया’ (चावल से बनने वाला पेय पदार्थ, जिससे नशा होता है ) भरा हुआ था जो वो आने-जाने वाले राहगीरों को पचास पैसे कटोरी के मोल पर बेचती थीं। साथ ही कुछ चना, चबेना भी था, जैसे लोग शराब के साथ चखना लेते हैं। अमीर भुने काजू और मूंगफली खाते हैं, गरीब भिगोया या अंकुराया चना। पता चला कि यही उस के परिवार की ‘आय’ का मुख्य स्रोत है , ‘तुम्हारा आदमी क्या करता है’ पूछे जाने पर एक हाथ माथे पर मारते हुए दूसरे हाथ से देगची की तरफ इशारा किया तेतरी ने , पल भर लम्बी इस शब्दहीन भाषा ने समझ दिया हमें, कि वह हंडिया के नशे के सिवा कुछ नहीं करता ।
इसी बीच पोपले मुंह वाला एक बूढा आदमी अपनी लाठी से, झुकी कमर और लडखडाती चाल को सहारा देता हुआ वहां आया , तेतरी ने उस से खुसफुस कुछ कहा ,अब बूढा हमारी ओर देख कर मुस्कुराते हुए बोला ‘अरे तेतरी ये झारखंड है बिहार नहीं ,यहाँ शराब में बंदी नहीं हुई और वैसे भी शराब नहीं ये चावल का पानी है’।आखिरी वाक्य जोर से बोला शायद मुझे सुनाते हुए। बूढ़े को ‘आजा’ बुला रही थी तेतरी, जो यहाँ दादा के लिए संबोधन है।
आजा को एकबारगी देख कर समझ आ गया आ गया बुढ़ापे में अपने घरों से दुरदुराये इस देश के ‘सीनियर सिटीजन्स’ में से एक है यह , जो अपने वक़्त को काटने की गरज से , या दो बोली बात करने की लिए और कभी जेब में रुपिया आठ आना हो तो हंडिया का स्वाद लेने की गरज से यहाँ आ जाता है , मगर उसकी मौजदगी से तेतरी अब बेहद आश्वस्त दिख रही थी. इन दोनों को देख कर बचपन में पढ़ी “रेणु” की कहानी ‘मलका टूरिया का बेटा’ बेतरह याद आने लगी। वक़्त के इस लम्हें में डूब जाने को मन किया ,मगर काफी देर से ऊंघ ऊंघ कर ऊबे हुए पिता ने , गाडी से अपना झल्लाया हुआ चेहरा निकाल कर बुलाना शुरू किया तो उठ कर आना पड़ा ।
आपको ये नजारा यहां झारखंड में थोड़ी-थोड़ी दूर पर मिलेगा। आप गांव की तरफ निकलिए। आम के बागीचे हों या पीपल की छांव। जहां थोड़ी सुस्ताने की जगह मिल सकती है, वहां कोई न कोई आदिवासी स्त्री हंड़िया लेकर बैठी रहती है बेचने। यह उनके लिए व्यापार है और व्यवहार भी। आदिवासी समाज इसे शराब नहीं मानता। उनकी निगाहों में हंड़िया दवा है, क्योंकि यह चावल से बनता है और इसे पीने से भोजन सुपाच्य हो जाता है।
आपको ये नजारा यहां झारखंड में थोड़ी-थोड़ी दूर पर मिलेगा। आप गांव की तरफ निकलिए। आम के बागीचे हों या पीपल की छांव। जहां थोड़ी सुस्ताने की जगह मिल सकती है, वहां कोई न कोई आदिवासी स्त्री हंड़िया लेकर बैठी रहती है बेचने। यह उनके लिए व्यापार है और व्यवहार भी। आदिवासी समाज इसे शराब नहीं मानता। उनकी निगाहों में हंड़िया दवा है, क्योंकि यह चावल से बनता है और इसे पीने से भोजन सुपाच्य हो जाता है।
झारखंड, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और बिहार के बाहर के लोगों से पूछा जाए तो वो शायद बता नहीं पाए मगर इन राज्यों के लोग हंड़िया के नाम से खूब परीचित हैं। सिर्फ परीचित ही नहीं, आदिवासियों के मुख्य पेय में इसकी गिनती होती है। इनका पर्व-त्योहार और शादी-ब्याह में हड़िया रहना जरूरी होता है।
किसी बाहरी को देखकर छुपना-छुपाना शुरू हो गया है, यह तो मैंने देख लिया। एक तो पुलिस हंड़िया बेचने वालों को भगाती है, उसका डर, दूसरा अभी बिहार में टटका लगा शराबबंदी का फरमान। लोग अकबकाए हुए हैं। अंकुश अलग बात और पूरे तौर पर बंद होना अलग बात। बिहार देश का चौथा ड्राई स्टेट बन गया है। अगला प्रतिबंध ताड़ी पर लग सकता है।
झारखंड तो बिहार का ही हिस्सा रहा है पन्द्रह वर्ष पहले तक। मैंने देखा है गांव में बहुत से घरों में हड़िया बनते और इसके सेवन के बाद लोगों को लुढ़के हुए भी। इसमें औरत-मर्द का भेद नहीं। सब पीते हैं, खूब पीते हैं। कह सकते हैं कि तय मात्रा का सेवन दवा की तरह है। चाहे वो दारू हो या हंड़िया। मगर आदिवासियों और देहातों में खूब चलन है इसका। लोग जम कर पीते हैं। एक बार तो सुदूर देहात में मैं शाम को गई थी तो लगभग सारा गांव नशे में डूबा इधर-उधर गिरा पड़ा था। जिन्होंने थोड़ी कम पी थी वो ही गिनती के लोग होश में थे। पता लगा अक्सर ऐसा होता है गांवों में। यहां तक की शहर के आसपास भी लोग मिल जाएंगे हंडिया पीते-पिलाते। यहां अभी महुआ का सीजन है और देसी शराब बनाने वाले भी बहुत हैं।
किसी बाहरी को देखकर छुपना-छुपाना शुरू हो गया है, यह तो मैंने देख लिया। एक तो पुलिस हंड़िया बेचने वालों को भगाती है, उसका डर, दूसरा अभी बिहार में टटका लगा शराबबंदी का फरमान। लोग अकबकाए हुए हैं। अंकुश अलग बात और पूरे तौर पर बंद होना अलग बात। बिहार देश का चौथा ड्राई स्टेट बन गया है। अगला प्रतिबंध ताड़ी पर लग सकता है।
झारखंड तो बिहार का ही हिस्सा रहा है पन्द्रह वर्ष पहले तक। मैंने देखा है गांव में बहुत से घरों में हड़िया बनते और इसके सेवन के बाद लोगों को लुढ़के हुए भी। इसमें औरत-मर्द का भेद नहीं। सब पीते हैं, खूब पीते हैं। कह सकते हैं कि तय मात्रा का सेवन दवा की तरह है। चाहे वो दारू हो या हंड़िया। मगर आदिवासियों और देहातों में खूब चलन है इसका। लोग जम कर पीते हैं। एक बार तो सुदूर देहात में मैं शाम को गई थी तो लगभग सारा गांव नशे में डूबा इधर-उधर गिरा पड़ा था। जिन्होंने थोड़ी कम पी थी वो ही गिनती के लोग होश में थे। पता लगा अक्सर ऐसा होता है गांवों में। यहां तक की शहर के आसपास भी लोग मिल जाएंगे हंडिया पीते-पिलाते। यहां अभी महुआ का सीजन है और देसी शराब बनाने वाले भी बहुत हैं।
सवाल यह है कि बिहार की शराबबंदी का असर आसपास के राज्यों पर कैसा और कितना होगा। अगर हड़िया बंद करने की बात आई तो संभव है आदिवासियों का घोर विरोध हो। मगर नशा किसी भी चीज का हो, उस पर लगाम लगाना जरूरी है। गांव-गांव में नशे की लत छूटेगी तभी विकास होगा।
4 comments:
बधाई प्रकाशन की
सूंदर आलेख इसी विषय पर आपकी कविता भी पढ़ी है हमने ।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (23 -04-2016) को "एक सर्वहारा की मौत" (चर्चा अंक-2321) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सही कहा
Shastri ji aapka bahut bahut dhnyawad..
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