अब हम कुलधरा के बहुत नजदीक थे। सड़क से दायीं तरफ को जाता है रास्ता। गांव की सरहद पर मिट्टी से गेट बना हुआ है। हर पर्यटक को अंदर जाने के लिए टिकट लेना पड़ता है।
हम बेहद उत्सुक थे जाने को कुलधरा और उसे जानने को भी। बच्चों के लिए खास आकर्षण की जगह थी क्योंकि उन्होंने सुन रखा था कि वहां भूतों का बसेरा है। सो रोमांचित थे सब। गांव की गलियों में धूल फांकती सड़क और दोनों ओर उजड़े घर।
गांव के समीप पहुंचे तो देखा अनेक गाड़ियां लगी हुई हैं। अर्थात पयर्टकों का काफी आना-जाना है यहां। जहां तक नजर गई, उजाड़ वीरान गांव। मगर कुछ घर बहुत अच्छी स्थिति में थे। मिट्टी के सजे संवरे घर। पिछले 200 वर्षों से उजाड़ और वीरान पड़ा भूतों का गाँव कुलधरा जैसलमेर से 18 किलोमीटर दूर स्थित है जिसे लगभग सन् 1300 में कर्मकाण्डी पालीवाल ब्राह्मणसमाज ने सरस्वती नदी के किनारे पर बसाया था। यह एक ऐसा वीरान गांव है जहाँ क़रीब दो सदियों से शमशान जैसा सन्नाटा है। रात की बात तो दूर, दिन में भी कोई अकेला इंसान खंडहर बन चुके घरों में घुसने से डरता है।
यहां शाम के बाद किसी को रहने की इजाजत नहीं, क्योंकि स्थानीय लोगों के अनुसार यहाँ रात्रि में भूतों का बसेरा रहता है। आज कुलधरा इतना प्रसिद्ध हो चुका है कि राज्य सरकार ने इसे ऐतिहासिक स्मारक घोषित किया है।
लोग कहते हैं कि अब भी यह स्थान रूहानी ताकतों से घिरा है।जब हम पहुंचे तो दोपहर हो चुकी थी पर हमें जरा भी गर्मी नहीं लग रही थी। कमरे के अंदर बड़ी खिड़कियां और छोटे-छोटे झरोखे बने हुए हैं। कुलधरा गाँव पूर्ण रूप से वैज्ञानिक तौर पर बना था। ईंट पत्थर से बने इस गांव की बनावट ऐसी थी, ऐसे कोण में घर बनाए गये थे कि हवाएं सीधे घर के भीतर होकर गुज़रती थीं। इस जगह गर्मियों में तापमान 45 डिग्री रहता हैं पर आप यदि अब भी भरी गर्मी में इन वीरान पडे मकानो में जायेंगे तो आपको शीतलता का अनुभव होगा। गांव के तमाम घर झरोखों के ज़रिए आपस में जुड़े थे इसलिए एक सिरे वाले घर से दूसरे सिरे तक अपनी बात आसानी से पहुंचाई जा सकती थी । घरों के भीतर पानी के कुंड, ताक और सीढि़यां कमाल के हैं ।
घर अंदर से काफी खूबसूरत है, ये अमित्युश ने कहा |
मगर बड़े हैरत की बात है कि इतना यह समृद्ध गांव वीरान क्यों हो गया। धनाढ्य पालीवालों ने रेगिस्ता़न में खेती की। पालीवाल अपनी वैज्ञानिक सोच,प्रयोगों और आधुनिकता की वजह से उस समय में भी इतनी तरक्की कर पाए थे। पालीवाल समुदाय आमतौर पर खेती और मवेशी पालने पर निर्भर रहता था। ऐसी मान्यता है कि पालीवाल ब्राह्मणों ने कुलधरा और जैसलमेर के चारों और 120 किलोमीटर इलाक़े में फैले 83 अन्य गांवों को लगभग 500 सालों तक आबाद किया था। इन पालीवाल ब्राह्मणों ने 1825 में गाँव छोड़ते समय शाप दिया था कि इस जगह जो भी बसेगा नष्ट हो जाएगा।
इतिहास के अनुसार जैसलमेर के भाटी राजपूत सामन्ती सरदार थे। लगभग 200 वर्ष पूर्व सन् 1825 में भाटी समाज के कमजोर राजा का एक सशक्त दीवान सालिम सिंह था। इसी सलिम सिंह की हवेली जैसलमेर किले के समीप थी, जहां हम जा नहीं पाए।
715 वर्ष पूर्व सरस्वती नदी के पश्चिमी किनारे पर उत्तर से दक्षिण में लम्बाई में फैला कुलधरा पालीवाल ब्राह्मणों द्वारा बसाया गया। कालान्तर में सरस्वती नदी उथली होते-होते विलुप्त हो गई, जिसे अब काक नदी अर्थात् सूनी नदी कहते हैं। सालिम सिंह कुलधरा के मुखिया की बेहद खूबसूरत बेटी की ओर आकर्षित था और उससे शादी करना चाहता था। सालिम सिंह की पहले से सात बीवियां थीं।
सालिम सिंह ने इस शादी के लिए गांव वालों और मुखिया पर दबाव बनाना शुरू कर दिया। इसके बाद गांव वालों ने मिलकर पंचायत की और रात ही रात में पूरा गांव कुलधारा को छोड़कर कहीं चला गया। यह घटना 1825 ईस्वी की मानी जाती है। ऐसी मान्यता है कि जब पालीवाल ब्राह्मण यह गांव छोड़कर जा रहे थे तो जाते जाते उन्होंने इस गांव को श्राप दे दिया कि यहां कोई नहीं बसेगा और यह हमेशा वीरान रहेगा।
वीरान उजड़ा गांव जो कभी आबाद था |
मुखिया द्वारा बेटी की शादी दीवान से ना करने पर दीवान ने बहुत भारी मात्रा में कर लगाने की धमकी गाँव वालों को दी। पालीवाल ब्राह्मण समाज के लोगों ने अपनी मान-मर्यादा और आत्मसम्मान को महत्व देते हुए रक्षाबन्धन के दिन गाँव छोड़कर जाने का फैसला किया, जिसमें कुलधरा सहित खाबा, खाबिया, काठोडी, आबुर, कन्डियाला, आसवा, दामोदरा इत्यादि आस-पास के 84 गाँव के लोगों ने साथ देते हुए रातों-रात गाँवों को खाली कर दिया और जैसलमेर के आस-पास की दूसरी रियासत में चले गए। इसी कारण आज भी कुछ पालीवाल ब्राह्मण रक्षाबन्धन का त्यौहार नहीं मनाते हैं। इन 84 गाँवों में से कुलधरा ही सबसे समृद्ध गाँव था, क्योंकि यहाँ के लोग रेगिस्तान में अच्छी फसल लेने की तकनीक जानते थे। आज भी कुलधरा में पालीवाल ब्राह्मणों के कुलदेवता बालाजी का बड़ा एवं सुन्दर मन्दिर है। हम उस मंदिर के अंदर गए, किन्तु वर्तमान में मन्दिर के अन्दर किसी प्रकार की मूर्ति नहीं है। कुलधरा की तरह बाकी गाँवों में भी ऐसे छोड़े गए मकान आज भी उजाड़ और वीरान पड़े हुए हैं, किन्तु प्रसिद्धि केवल कुलधरा को ही मिली।
हम गांव घूमे मगर हमें कुछ वैसी रूहानी ताकत का अहसास नहीं हुआ। हां जरा दूर में कई जगह खुदाई की हुई मिली। पता चला कि लोग यहां खजाने की खोज में आते हैं। कुछ वर्षों पहले एक विदेशी यहां रात में खुदाई करते पकड़ा गया था। वो जगह भी हमने देखी। हालांकि जब हम कुलधरा पहुंचे तो वहां काफी भीड़ थी और उजड़े मकानों की भी ऐसी लिपाई-पुताई की गई थी कि हमें वह सजे-संवरे गांव का आभास दे रहा था। वहां पानी सं
छत से ली गई तस्वीर |
हम वहां एक कमरे के अंदर गए। लकड़ी का दरवाजा था और अंदर दो छोटी-छोटी खिड़कियां बनी हुई थी। हम अंदर ही थे कि दरवाजा हल्की चरमराहट के साथ बंद होने लगा। भूतों का इतना डर कि मेरा छोटा बेटा अभिरूप डर के मारे मुझसे लिपट गया और बोलने लगा कि .. यहां सच में भूत है, हमें बंद कर देगा। और वह बाहर खींच कर ले गया।
इसी कमरे से डर कर बाहर निकले अभिरूप |
हम मकान की छत पर गए। आसपास जहां तक नजर जाती, सब उजड़ा हुआ दिखा। कुछ अंदर जाने पर बेहद खूबसूरत मकान दिखा। वाकई मकानों की बनावट ऐसी थी कि चारों तरफ से हवा का प्रवाह था। बेहद नक्काशीदार घर था वो, जिसमें झरोखे भी बने हुए थे।
वहां से निकलकर हम एक ऐसे मकान में पहुंचे, जिसके बारे में कहा जाता है कि वहां भूतों का बसेरा है। वह मकान जमीन पर बना हुआ है मगर नीचे तहखाना दिखता है। एक व्यक्ति के उतरने लायक जगह है। ऊंची-ऊंची सीढ़ियां है।लोगों को इसी जगह आत्माओं का आभास होता है।
कुलधरा में 600 ये अधिक घरों के अवशेष हैं। एक मंदिर, एक दर्जन कुएं आैर एक बावली, चार तलाब और आधा दर्जन छतिरयां हैं। घर के अंदर के हिस्से में तहखाने हैं जिन्हें पालीवालों ने बनवाया होगा, जहां वे अपने आभूषण और नकदी समेत अन्य कीमती सामान रखते होंगे।
पालीवाल ब्राह्मण उस समय की सिंध रियासत (अब पाकिस्तान में) और दूसरे देशों से पुराने सिल्क रूट से अनाज, अफीम, नील, हाथी दांत के बने आभूषण और सूखे मेवों का ऊँटों के कारवां पर व्यापार करते थे. इसके अलावा वे कुशल किसान और पशुपालक थे।
तत्कालीन ब्रिटिश इतिहासकार कर्नल जेम्स टॉड ने अपने प्रसिद्ध ग्रंथ 'ऐनल्स एंड एंटिक्विटीज़ ऑफ़ राजस्थान' में लिखा है कि सालिम सिंह के अत्याचारों की वजह से 'यह पैसे वाला समाज लगभग स्व निर्वासन में है और बैंकर्स अपनी मेहनत के मुनाफे के साथ घर लौटने को डरते हैं’।
हमें ऐसा तो कुछ नहीं लगा कि हम भूतों का बसेरा देख रहे हों मगर उस जालिम दीवान सालिम सिंह के प्रति मन में कटुता जरूर आई जिसके कारण एक रात में सब गांव छोड़ने पर मजबूर हो गए। स्वभाविक हैं कि वृद्ध, बीमार और कुछ औरतें जो नहीं जा पाए होंगे वो यहीं रहे होंगे और मृत्यु को प्राप्त हुए होंगे।
बाद की कहानी तो कोई हमें नहीं बता पाया मगर इतना जरूर पता चला कि जिस किसी ने भी वहां बसने की कोशिश की वो जीवित नहीं बचा। जो भी हो,भूतिया स्थान के अलावा इस बात के लिए भी यह जगह देखी जा सकती है कि एक लड़की के कारण 84 गांव के वाशिंदों ने अपना घर त्याग दिया और उस दीवान सालिम सिंह के अत्याचार का विरोध किया।
कुछ बचे हुए है मकान, जिसे देखकर अच्छा लगता है। |
ऐसा माना जाता है की पालीवाल जैसलमेर से निकलकर मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में बस गए. उन्होंने जो गाँव छोड़े उनमें से अधिकतर कुछ नए नामों के साथ फिर से आबाद हो गए. लेकिन कुलधरा और कुछ हद तक खाबा (इसके एक हिस्से में पाकिस्तान से विस्थापित हिन्दू रहते हैं) आज तक वीरान हैं।
एक टीवी चैनल के अनुसार पैरानार्मल सोसाइटी ऑफ़ इंडिया की टीम कई बार कुलधरा और खाबा जा चुके हैं। बताते हैं कि उन्होंने वहां अपने इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स पर आत्माओं की उपस्थिति दर्ज की। हालांकि आज के युग में इस पर यकीं करना बेहद मुश्किल है।
अब हमें निकलना था सम की ओर। शाम होने वाली थी। रेत का आकर्षण अपनी ओर खींच रहा था।
जब हमारी गाड़ी कुलधरा से निकली तो दिल ने कहा...एक बार और आएंगे यहां और पास के रिसोर्ट में ही ठहरेंगे, ताकि रात को शायद किसी भूत से मुलाकात हो पाए।
अब सम की ओर..............
अब सम की ओर..............
1 comment:
बेह्तरीन
Post a Comment