Tuesday, March 22, 2016

होली तो हर बरस आती है..........


उस बार सहेलि‍यों ने शरारत की.....भांग वाली मि‍ठाई खि‍ला दी। फि‍र तो सारा दि‍न हवा में......सब कुछ सामने दि‍खता, मगर लगता कोई फि‍ल्‍म चल रही हो।

होश बेकाबू....पर होश में रहने की कोशि‍श.....रंग का समय तो बीता। सांझ फगुआ के गीत...ढोलक की थाप..और सबका आना-जाना... .

अबीर से मांग भरने का अजब रि‍वाज...सहेलि‍यां खूब खुश होतीं यूं एक दूसरे को रंगकर......

वो भी आया.....हर हाेली में आया करता था......बचपन से

बस हम दो सहेलि‍यां ही डूबी थी भांग ने नशे में...शाम सब जुटीं...खि‍लखि‍ल...सबको पता चल गया था....शरारतें चरम पर... हमें खि‍जाना.....एक ही बात बार-बार हमसे बुलवाना...खूब सारे व्‍यंजन सामने रख जबरदस्‍ती खाने का आग्रह...;नही, दुराग्रह

उसने डांटा सबको....क्‍यों तंग कर रही हो बि‍चारी को...एक तो वैसे ही परेशान है.....

वाह जी वाह...बड़ी फि‍क्र है इसकी...सब चि‍ढ़ाने लगी उसे ......उसने नजाकत से गालों पर चुटकी भर के रंग लगाया.....सब सखि‍याें को भी...आपस में मशगूल सभी

हम सब साथ...वो दूर बैठा देखता रहा.....

मैं थक के चूर.....बेसुध सी..वहीं खटि‍या पर पड़ गए मैं और मनू....बाकी लोग हमें घेरकर बैठे....जाने कि‍तनी देर यूं ही गुजर गए..शायद मेरी आंख लग गई थी.....

कि‍सी के होंठो के लम्‍स मेरे कानों में थे........जा रहा हूं.....और मेरे चेहरे से आवारा लट संवार गई दो ऊंगलि‍यां.....

होली तो हर बरस आती है.......वो दि‍न नहीं लौटते अब.....


तस्‍वीर- पलाश का जंगल...आेरमांझी से रामगढ़ के बीच में

1 comment:

कविता रावत said...

होली तो हर बरस आती है.......वो दि‍न नहीं लौटते अब.....

सुनहरी यादें
होली की शुभकामनाएं!