खिलता है तुम पर रंग गुलाबी और फि़रोजी....झेंप गई थी मैं और तुम भी। बस एक उजली मुस्कराहट खिली थी होंठों पर।
श्रारती नजरों से देखते हुए कहा तुमने..तुम्हारे कपोल तो पहले ही आरक्त है .अब कोई क्या रंग लगाए इस पर। मैंने पलकें ऊपर की, पूछा-लाल-गुलाबी के सिवा कोई और रंग नहीं होता क्या। तुमने कहा..हां अब तो सारे रंग होते हैं..इन्द्रधनुषी। मैं चाहता हूं तुम्हें हर रंग से रंगना।
तुम जाने वाले थे उस रोज..होली के ठीक एक दिन पहले। कहा मैंने....रूक जाते कल भर...। लंबी सांस खींची तुमने..नहीं रूक सकता और बिना होली मिलन के कैसे चला जाता, इसलिए तो आज आया हूं।
मैंने एक भरपूर नजर से देखा तुम्हें...बहुत अच्छे लग रहे थे। तुमने हल्का फिरोजी़ रंग का टी शर्ट पहना था। तुमने भी मुझे देखा, फिर घड़ी देखी। कहा...अब वक्त हो गया है...देर हो जाऊंगा। तुम अपने साथ कई रंगों के पैकेट लेकर आए थे..गुलाल भरे। सारे टेबल पर रखे थे। कहा...कल सारे रंग लगा लेना। मैं समझूंगा, मैंने रंग दिया तुम्हें।
तुम तेजी से उठे। जैसे बचना चाह रहे थे आगे के वार्तालाप से, या नजरें चुरा रहे थे..कुछ झिलमिलाया हो आंखों में जैसे....
दरवाजे तक पहुंचे ही थे कि मैंने आवाज दी....तुम रूके। अनजाने ही मेरे हाथों में जो पैकेट आया गुलाल का, वो फिरोजी था। हाथों में गुलाल भर गालों में लगाया। तुमने उस पैकेट से गुलाल लिया और मेरे माथे पर तिलक किया और धड़धड़ाते हुए सीढ़ियां उतर गए।
इस बरस सोचा है, फि़रोजी गुलाल नहीं लाऊंगी खरीदकर। रंग लाल और हरे ही अच्छे लगते हैं। फ़िरोजी रंग के गुलाल, गुलाल जैसे अब नहीं लगते।
3 comments:
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " बंजारा " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
Bahut bahut dhnyawad aapka
खुद ख़रीदा और अपने लाये गुलाल में अंतर जो होता है इसलिए लाल और हरे ही रंग अच्छे ....
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
Post a Comment