हवाओं में सिमट कर चले आना,
खुश्बू बन मन उपवन महकाना
यादों की गलियों से
फ़कत यादें ही साथ लाई हूं
सदियों पुराने किसी स्मारक सा
मेरे हृदय के मानचित्र पर
सदैव के लिए अंकित हो जाना
बस इतनी गुजारिश है
जब जी चाहे तुमसे मिलना
छायाचित्र की तरह ही सही
इन आंखों से मुस्कराते हुए गुजर जाना.....
तस्वीर- बड़ा बाग, जैसलमेर
3 comments:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (12-03-2016) को "आवाजों को नजरअंदाज न करें" (चर्चा अंक-2279) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर ...
Bahut bahut dhnyawad aur aabhar aapka
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