नीला शहर...नीला आसमान
सुरमई सी शाम थी
जब
शहर की बूढ़ी दरख़्त तले
नजरें बचा
उसने पिया था
लोटे में बचा हुआ जूठा पानी
मेरे साथ शाम भी जरा सी
शरमाई थी
उसकी आंखों में
सितारों सी कौंध थी
बूंदों ने हाेंठो को छूकर
हवाओं के कान में बोला
इश्क का स्वाद बड़ा मीठा है
गढ़ की ऊंची दीवारों से झांक
सूरज मुस्कराने लगा
हवाओं ने झट उसकी
नीली कमीज चूम ली
नीले शहर का नीला आसमान
जरा सा और खिला नजर आया
बरगद की उम्रदराज दरख़्त ने
सांझ की बेला में
दो प्रेमियों को ऐसे देखा
जैसे
डिठौना लगा रही हो कायनात।
तस्वीर....ब्लू सिटी यानी जोधपूर की...एक शाम ली थी मैंने
2 comments:
आपने लिखा...
कुछ लोगों ने ही पढ़ा...
हम चाहते हैं कि इसे सभी पढ़ें...
इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना दिनांक 26/02/2016 को पांच लिंकों का आनंद के
अंक 224 पर लिंक की गयी है.... आप भी आयेगा.... प्रस्तुति पर टिप्पणियों का इंतजार रहेगा।
आपने लिखा...
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हम चाहते हैं कि इसे सभी पढ़ें...
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