जब से लौटी हूं
विंड मिल्स की हवाओं को
महसूस कर
स्वर्णिम दीवारों को
छूकर
आंखों से मीनारों का
कद नापकर
हथेलियों में रेतीला स्पर्श
भरकर
अपने शहर की धूप
मुझे उदास लगने लगी है
बसंत की सुहाती हवा
अजनबी लगती है
विंड मिल्स के तले
तेज हवाओं से बचाने को
जब भरती थी मुट्ठियों में
अपने ही केश
एक हाथ बिखेर देता था सब
जैसे
धूप में खिलखिलाहट भर
किसी ने लपेटा है मुझको
फिर से एक बार
अपने बाजुओं में
तस्वीर- जैसलमेर में बड़ा बाग के समीप की
3 comments:
आपने लिखा...
कुछ लोगों ने ही पढ़ा...
हम चाहते हैं कि इसे सभी पढ़ें...
इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना दिनांक 23/02/2016 को पांच लिंकों का आनंद के
अंक 221 पर लिंक की गयी है.... आप भी आयेगा.... प्रस्तुति पर टिप्पणियों का इंतजार रहेगा।
सुन्दर अभिव्यक्ति
वाह ..बढ़िया दी
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