हर सर्दियों में
जब ठंढी हवा बहती है
खामोश सी
कुछ रिश्तों को भी सर्द कर जाती है
परत-दर-परत
बातें उघड़ती है, रिश्ते दरकते हैं
सूखी त्वचा पर
खरोंच के निशान बनते हैं
तीखी हवा, तीखे शब्दों से
बचने को
कानों के गिर्द कसकर
उनी मफ़लर लपेटते हैं हम
मगर आवाजें छेदती है मन
जैसे सर्द हवा
बंद कपाट की दरार से
जबरन आ जाए कमरे के अंदर
और पुराने लिहा़फ की तरह
सर्द हवा से बचने की कोशिश करें हम...
2 comments:
हर सर्दियों में
जब ठंढी हवा बहती है
खामोश सी..
..ठंढी को ठंडी कर लें ..
रचना में अच्छा बिम्ब देखने को मिला ..
बहुत सुन्दर
पुराने ल्हाफ की तरह इन जर्जर र्र्श्तोि को औढ कर ..............
सुंदर प्रस्तुति।
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