Saturday, December 5, 2015

जिंदगी प्‍यारी लगने लगी है.....


भीत पर उकेर रही थी उंगलि‍यां
पहाड़, पंछी
उगता सूरज

रामतोरई डूबो
सुंदर फूल उगाए थे
लड़की ने
इस सोहराई में
घर की खड़ि‍या पुती दीवार पर

उसका मन फि‍र मचल रहा है
देख सुहाती सी धूप
रंग-बि‍रंगे फूल और
चटखती कलि‍यां

जंगली फूलों सा लड़की का मन
हरा-भरा है
हाथों में रंग भरकर घर के पीछे वाली
दीवार पर
भरी दोपहरी
चांद उगा आई है

जिंदगी
सहसा तू मुझे भी
बड़ी प्‍यारी लगने लगी है
सपने बुनती उस लड़की की तरह....

6 comments:

Onkar said...

वाह, बहुत बढ़िया

देवेन्द्र पाण्डेय said...

आनंद दायक कविता। ....वाह!

JEEWANTIPS said...

सुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका इंतजार....

कविता रावत said...

जिंदगी
सहसा तू मुझे भी
बड़ी प्‍यारी लगने लगी है
सपने बुनती उस लड़की की तरह....
..सच सपने न हो तो जिंदगी जिंदगी न रहेगी .
बहुत अच्छी रचना

कविता रावत said...

जिंदगी
सहसा तू मुझे भी
बड़ी प्‍यारी लगने लगी है
सपने बुनती उस लड़की की तरह....
..सच सपने न हो तो जिंदगी जिंदगी न रहेगी .
बहुत अच्छी रचना

कविता रावत said...

जिंदगी
सहसा तू मुझे भी
बड़ी प्‍यारी लगने लगी है
सपने बुनती उस लड़की की तरह....
..सच सपने न हो तो जिंदगी जिंदगी न रहेगी .
बहुत अच्छी रचना