एक भूला सा स्पर्श फिर याद आएगा....पगडंडियों पर तय फ़ास्ले पर चलती दो हथेलियां आपस से छू जाएंगी...सर्द मौसम में कोई खुद में जरा सा और सिकुड़ जाएगा.....गुलाब थामे पीछे मुड़-मुड़कर देखती हुई वो चली जाएगी....कोहरे में घिरा कोई अपनी ही धड़कनों को सुनता, थमा रह जाएगा....
बरसेंगी मावठ की बूंदे....फिर...फिर..फिर
दस्तक दे दी है सर्दी ने.....कोहरे को बदन में लपेटे हुए...क्या अब भी कोई खिड़की तले आएगा....
3 comments:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (04-12-2015) को "कौन से शब्द चाहियें" (चर्चा अंक- 2180) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
Thank you yashoda ...
Ji bahut bahut dhanyawad aur aabhar
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