तुम कौन हो
इतनी जगह घेरे हुए
कि किसी और के लिए
कोई जगह ही नहीं बाकी
तनिक सरको
हमने यहां रहने दिया था तुम्हें
कब कहा था
अपने कब्जे में कर लो सब कुछ
ये भाड़े का मकान नहीं
कि जब तक रहो, मनमर्जी करो
और जब बदलने सोचो
मेरा सब तोड़-फोड़ जाओ
जान निकल जाती है
मरम्मत नहीं हो पाती फिर
जाना है, तो सब सामान ले निकल जाओ
ये मेरा दिल है, सरकारी आवास नहीं।
5 comments:
जय मां हाटेशवरी....
आप ने लिखा...
कुठ लोगों ने ही पढ़ा...
हमारा प्रयास है कि इसे सभी पढ़े...
इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना....
दिनांक 16/12/2015 को रचना के महत्वपूर्ण अंश के साथ....
पांच लिंकों का आनंद
पर लिंक की जा रही है...
इस हलचल में आप भी सादर आमंत्रित हैं...
टिप्पणियों के माध्यम से आप के सुझावों का स्वागत है....
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
कुलदीप ठाकुर...
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 17-12-2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2193 में दिया जाएगा
आभार
अच्छी लगी यह कविता।
Aapka bahut bahut dhnayawad
Ghar ka jatan.
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