Monday, November 2, 2015

ठहरे लम्‍हों में


जब पास ढेरों उबासि‍यां
जमा हो जाती हैं
तल्‍खि‍यों में जीते-जीते
जी उकता जाता है
लगातार कसैलापन सा
मुंह में बना रहे
उस वक्‍त हम जि‍ंदगी को स्‍वादहीन पाते हैं।

मीठे-तीते अहसास से परे
कोई लम्‍हा जब ठहरता है
हवाएं बेतरतीब बहती हैं
फड़फड़ा उठते हैं खुली कि‍ताब की तरह
जि‍न्‍दगी के पन्‍ने
उल्‍टी-सीधी दि‍शा की ओर
झांकते हैं उनमें से
कुछ अजनबी लगते चेहरे
जो कभी अपने हुआ करते थे

ऐसे ठहरे लम्‍हों में
वर्तमान अदृश्‍य होता है
मीठी लगती हैं वो यादें भी
जो पलों में मि‍ला युगों का छीना
आज तटस्‍थ है
होने न होने के बीच
गया वक्‍त, बि‍छड़े लोग, बि‍सराए पल
कुछ देर को अटकाते हैं

हम सारी उकताहट
दर्द और खुशी के यकसां एहसास को
जेहन के मर्तबान में भर
जोर-जोर हि‍ला एकसार करते हैं
जैसे अचार में ढेर सा नमक मि‍ला
जज्‍़ब होने को धूप में रखा जाए

उदास, स्‍वादहीन जिंदगी में
चटखारें भरती हैं ऐसी उबासि‍यां
वक्‍त को थामती हैं, लम्‍हों को जीती हैं
ठहरो जरा
बेरंग लगती जिंदगी में एक बार
लम्‍हों को थामकर देख लो
कोई भी गया वक्‍त बुरा नहीं होता।

8 comments:

ब्लॉग बुलेटिन said...

ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, ब्लॉग बुलेटिन: प्रधानमंत्री जी के नाम एक दुखियारी भैंस का खुला ख़त , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

Rishabh Shukla said...

सुन्दर रचना ........... मेरे ब्लॉग पर आपके आगमन की प्रतीक्षा |

http://hindikavitamanch.blogspot.in/

http://kahaniyadilse.blogspot.in/

निवेदिता श्रीवास्तव said...

सच यही जीवन है .... पल - पल बीतता ,पल पल छीजता …

Unknown said...

कोई भी गया वक्त बुरा नहीं होता : बहुत ही सच बात है। बधाई। सस्नेह

Madan Mohan Saxena said...

सुन्दर प्रस्तुति , बहुत ही अच्छा लिखा आपने

डॉ. मोनिका शर्मा said...

जीवन में हर रंग है । बहुत उम्दा रचना

रश्मि शर्मा said...

Bahut bahut dhnyawad aapka

RITA GUPTA said...

सुंदर रचना ,वाह .