फिर एक बार
मौसम बदलने को है
गए मौसम में
एक कसक बंद हुई थी
दिल के कोकुन में
रेशमी अहसास के साथ
एक दर्द
करवटें लेता रहा लगातार
सलवटें चुभती रही,....
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गुजरे मौसम की महक
बेसाख़्ता
खींच ले गई
अपने माज़ी की तरफ़
नहीं झड़ते अब
मेरे बागीचे में फूल शैफ़ाली के
रात-रात भर
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दूबों की नोक पर
बुंदकियां सिमटी मिलती है
हर सुबह
ओस नहीं है वो, आंख से झरे
मोती हैं
जो हरे धागे की मख़मली चादर पर
बिखरे रहते हैं, हर सुबह...
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दश्ते-ग़ुरबत में
फिर चांदनी का बसेरा होगा
फूल महकते होंगे
रजनीगंधा की कलियां
चटखती होगीं
हरसिंगार झरता होगा
माज़ी-ओ-हाल जिसे सौंपा
उसके दिल का मौसम
नामालुम अब कैसा होगा.....।
3 comments:
आहा बदलते मौसम ने दस्तक दी ..कि नगमों ने कानों में चुपके से कुछ कह दिया ..बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति रश्मि जी ..सभी टुकड़े बेहतरीन ..जारी रहिये जी | शुभकामनाएं आपको
Thank you
माज़ी-ओ-हाल जिसे सौंपा
उसके दिल का मौसम
नामालुम अब कैसा होगा.....।
बहुत खूब.
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