Monday, September 28, 2015

झील का कि‍नारा


व्‍याकुल चांद
आकर ठहरा ही था आकाश में
कि‍ उतरना है अभी
उसी झील में
जि‍सका पानी
हर रोज ढलती शाम को
हरे रंग में बदल जाता है।

एक चांद चेहरा
उदासी के साए से
नि‍कलने को है बेताब
उसी झील कि‍नारे बैठ
पत्‍थरों पर
पायल की छमछम संग
दर्द भरा कोई गीत गुनगुना रहा था ।

चांद
आसमां से उतर
बैठ गया
झील की सतह पर चुपचाप
देखता रहा
डूबे हुए दो पावों के महावर को
झील के पानी में घुलते हुए

चांद
पानी की तरह
चूमना चाहता था
पांवों से लि‍पटे पायलों को
जि‍सकी छमछम से
नि‍कलता था एक नाम
जो सूरज सा दमकता था
लड़की के खूबसूरत माथे पर कभी

अब चांद
छुप गया घने पेड़ों के अक्‍स तले
देखता रहा
आंसुओं की लुकाछि‍पी से घबरा
बह नि‍कले
आंखों के काजल को
इस कदर उदास लगने लगी थी
वो कत्‍थई आंखें
जैसे तारों भरे आसमान से
कि‍सी ने चांद चुराया हो

रात उतरने लगी
पीले टि‍कोमा के फूल
चांदनी में और भी
खूबसूरत लगने लगे
चांद चलकर झील के मुहाने आ ठहरा
लरज उठे दो बेपरवाह से पांव
ये गुस्‍ताख चांद
कहीं चूम न ले उन पांवों को
जि‍न्‍हें छाती पर धरकर
सोया करता था उसका सूरज

अाज
डूब चुका है सूरज
कल इसी झील के पूरब से नि‍कलेगा
तब हरा पानी
यकायक सफेद हो जाएगा
उदास आंखों ने
पत्‍थरों को सौंप दी अपनी अमानत
चट्टान पर रखा है
कि‍सी की
आंखों का काजल, होंठों की सि‍सकी
और एक जोड़ी पायल

भोर जब सूरज की
आंख खुलेगी
छटपटाता सा ढूंढेगा
छमछम करते पैरों का अक्‍स
तीखी धूप में कुछ नजर नहीं आएगा
एक बार फि‍र
झील के पानी में पेड़ों का घना साया
उतर आएगा
चांदनी मुस्‍कराएगी

चांद
छुपकर करेगा पीपल की ओट तले
कत्‍थई आंखों वाली परी का
इंतजार
आज तो वो जरूर आएगी
पायल, बि‍छि‍या, कंगना पहन
रात से बति‍याएगी

मगर
ढलती रात ने
उदास, सूनी आंखों में अंधि‍यारे का काजल
लगा दि‍या
रोते पत्‍थरों ने कहा चांद से
खो गई कि‍सी की अमानत

झील उदास है, पेड़ खामोश हैं
अब कि‍सी शाम
पानी का रंग हरा नहीं होता
रोज रात कोई
सि‍सकि‍यां भरता है
पानी में कि‍सी के  पैरों का
महावर धुलता है
झील का लाल पानी देख
चांद अब छुप-छुप कर रोता है।

3 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (30-09-2015) को "हिंदी में लिखना हुआ आसान" (चर्चा अंक-2114) (चर्चा अंक-2109) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

रश्मि शर्मा said...

Bahut-bahut dhnyawad aur aabhar aapka.

Madan Mohan Saxena said...

उम्दा