Sunday, June 7, 2015

एक कप चाय और उनकी याद



चाय की एक कप भी जाने
क्‍या-क्‍या याद दि‍लाती है
आज फि‍र 
झुटपुटी सी शाम में
हमदोनों हैं तन्‍हा
कोई साथी था
अपना, तब
छलकते थे हम दोनों
नारंगी शाम को
देखते थे रात का चोला बदलते
ये चाय भी न
यादों की शक्‍कर घोल कर
जुबां पर चढ़ती है इन दि‍नों
कि‍सी से न कहना
उनकी याद रोज आती है इन दि‍नों....

3 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (08-06-2015) को चर्चा मंच के 2000वें अंक "बरफ मलाई - मैग्‍गी नूडल से डर गया क्‍या" (चर्चा अंक-2000) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

Mithilesh dubey said...

सुन्दर अभिव्यक्ति

यहाँ भी पधारें
http://chlachitra.blogspot.in/

http://cricketluverr.blogspot.com

दिगम्बर नासवा said...

बहुत खूब ... चाय के साथ यादों की शक्कर ... मीठा तो होना ही है ...