Saturday, June 6, 2015

छत पर कागा बोल गया....




छत पर कागा बोल गया
मन बिरहन का डोल गया
अब जाय पूछ लूं सोणी से
कब अइहे पिहू अनहोणी से
अब सारी रात जगाऊंगी !! 
उस डगर पे आँख लगाऊंगी !!
दीप जली इस संझा में
मंदिर की बाजती झंझा में
वो शंकर में भी दिखता है
वो कंकर में भी दिखता है
मैं दीपशिखा बन जाऊंगी !!
उस डगर पे आंख लगाऊंगी !!
फाल्गुन ने फूल खिलाया है
भंवरा मन भी अकुलाया है
महुवा रस मद से बौर गया
मेरी इन आँखों का ठौर गया
ये नशा तुझे चखाऊंगी !!
उस डगर पे आँख लगाऊंगी !!
सुबह को जल्दी उठना है
चूल्हा-चक्‍की और पिसना है
ये गैया तुझी को पूछती है
बैलों की जोड़ी रूठती है
तुझे सारी बात बताऊंगी !!
उस डगर पे आंख लगाऊंगी !!
तू पैसा ले , जो दुनिया दे
मुझको एक छोटी मुनिया दे
तेरी माँ के ताने सहती है
ये जीव जड़ी चुप रहती है
मैं आंगन फूल खिलाऊंगी !!
उस डगर पे आंख लगाऊंगी !!

photo- साभार गूगल

5 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (07-06-2015) को "गंगा के लिए अब कोई भगीरथ नहीं" (चर्चा अंक-1999) पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

Mithilesh dubey said...

बहुत ही उम्दा रचना


यहाँ यहाँ भी पधारें
http://chlachitra.blogspot.com
http://cricketluverr.blogspot.com

Onkar said...

सुन्दर रचना

कविता रावत said...

तू पैसा ले , जो दुनिया दे
मुझको एक छोटी मुनिया दे
तेरी माँ के ताने सहती है
ये जीव जड़ी चुप रहती है
मैं आंगन फूल खिलाऊंगी !!
उस डगर पे आंख लगाऊंगी !!
… सच कहा मुनिया
एक औरत के लिए ताने सहना हंसी मजाक नहीं। .

कविता रावत said...

तू पैसा ले , जो दुनिया दे
मुझको एक छोटी मुनिया दे
तेरी माँ के ताने सहती है
ये जीव जड़ी चुप रहती है
मैं आंगन फूल खिलाऊंगी !!
उस डगर पे आंख लगाऊंगी !!
… सच कहा मुनिया
एक औरत के लिए ताने सहना हंसी मजाक नहीं। .