भूल तो जाऊँ कि अब कहाँ जरूरत है वो ।
कैसे भुलाऊँ कि मेरी पहली मुहब्बत है वो ।।
भीड़ में हरेक धड़ पर तेरा ही चेहरा है ।
अफ़सोस शर्मिन्दा नहीं बे-मुर्रवत है वो ।।
रात ज़हन में इक लम्स मचलता ही रहा ।
तू था या उनींदी रात की शरारत है वो ।।
शेर कहती है नदी तुमको अचंभा क्यूँ ।
उस पेड़ को हरा रखने की रवायत है वो ।।
तुझे मुआफ़ किया पर इतना जान ले ।
पूजा से ख़ुश्क फूल की बगावत है वो ।।
1 comment:
खूबसूरत अभिव्यक्ति रश्मि जी।
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