कौन हो तुम
इतने अजनबी तब भी
नहीं लगते थे
जब पहली बार मिले थे
अब
सर्प के केंचुल सा
पुराना रूप उतार
ये कौन सा रूप धरा है तुमने
बताओ जरा
इक रात में कैसे हो जाती है
सदियों सी दूरी
मन बदलते ही सब कुछ
बदल जाता है
जिन शब्दों को सुन
रीझा करते थे
वो ही शब्द अब
नश्तर सा चुभता है
प्यार का रंग
इतना कच्चा कैसे होता है
बताओ तुम ही
कोई अपना अजनबी क्यों होता है...
तस्वीर . एक धुंध भरी रात का सफ़र
4 comments:
सुन्दर!!
इसी बात का तो मलाल है... क्यों..कोई बताये
सुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका इंतजार...
बहुत सुन्दर
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