आई बहुत तेज हवा,सर्र-सर्र
टकराने लगे
खिड़कियों के पट
हवाओं के थपेड़ों से
खुला दरवाजा , फिर
बंद हुआ भड़ाक से
फरफरा कर उड़ने लगे
अलगनी पर टंगे कपड़े
कुछ शीशे तड़के
कुछ गमले लुढ़के
कुछ पोस्टर फटकर उड़े
पत्तियों का कांपता रहा मन
ललछौंहे लीची के टिकोरे
टपटपा कर नीचे गिरे
कोलतार वाली सड़क पर
बिछ गए
गुलमोहर के लाल गलीचे
पटापट गिरते ओलो से
उजली हो गई हरी धरती
भीगे सहमे से लोग
छुपते रहे, दुबके रहे
अब थम गया तूफान
हो गई गहरी शाम
सब थम गया एक बार
आकर चला गया
भूकंप, ओला और तूफान
तारों से खिला है आसमान
एक दिन और प्रकृति के
अनगिनत रूप
देख कर हम सब हैं हैरान।
तस्वीर..आज शाम खूब आेले गिरे...
5 comments:
बढ़िया प्रस्तुति...
badhiya likha ...
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 14 - 05 - 2015 को चर्चा मंच की चर्चा - 1975 में दिया जाएगा
धन्यवाद
बहुत ही अच्छी रचना प्रस्तुत की है आपने।
बहुत शानदार आपको बहुत बधाई
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