तुम बदल रहे हो
धीरे-धीरे
मैं सुन रही हूं
दूर होते कदमों के
आहिस्ता पदचाप
इतने हौले, कि खुद को भी भान नहीं
दिल धड़कता है
कहता है
संभलो, कि कुछ होने को है
मैं अनसुना करती हूं
वो आवाज
दौड़ती हूं तुम्हारी ओर
हमक़दम बन
थामती हूं कस कर तुम्हारा हाथ
पर जानती हूं
फिसल रही है हथेली
ऊंगलियों में अब
वो कसाव नहीं
छूट रहा कुछ
बेआवाज..आदतन जैसे
मैं डरती हूं
इंकार करती हूं
देती हूं तसल्ली खुद को
कि नहीं कुछ ऐसा
मगर बदलाव की बयार से
सहमा है मन
जानती हूं सच
कि बाद तेरे
कितनी सूनी होगी सारी दुनिया
पर
कौन ठहरता है, किसी के लिए
हमेशा-हमेशा
कई बार
तन साथ रहते भी
मन पाखी सब तज उड़ जाता है
देह का पिंजर
आंखों में टंगा रह जाता है
एक रोज जब सुनी थी
तेरे आने की आहट
फूलों के गुलशन में
थे खुशियों के सजे बेलबूटे
बांहे पसार
किया था स्वागत
जब आंख खुलीं
पलों में जैसे गुजरे चुके थे
कई बरस
चाहा था खुश होकर सुनाना
आसमान को
अपनी ही किलकारी
तभी पाया
पावों के नीचे खिसका है कुछ
ये तुम थे
थी तुम्हारी वो तमाम कोशिशें
जिसने बांधा था
मुझे एक प्रगाढ़ गुंजलक में
अब हैं सारे बंधन ढीले
सम सी है आवाज तुम्हारी
ज्यूं होना न होना किसी का
एक बराबर होता है
सदियों के वादे वाला प्यार
बरसों में थमा है
कहता है दिल
थमो, रूको, सोचो एक बार
पांव के नीचे की धरती सरकती है अब
बदल लो ठिकाना
या बाजुओं में बांध सको तो बांध लो
सागर
अब लहरें किनारे छूने को है
प्यार की नैया को
वक्त डुबोने को है
हां, मैं सुन रही हूं
दूर जाते कदमों की आहट
स्तब्ध हूं
वक्त की इस बेवफाई पर
तुम मेरे थे, मेरे हो
मेरे ही रहोगे मगर
प्रेम का पाखी तो
कब का उड़ चुका है दूर आकाश।
1 comment:
पाखी उड़ जाते हैं ... समय बीत जाता है पर प्रेम रहता है साथ ... नश्वर जो है उसे जाना ही है ...
गहरी भावपूर्ण रचना ...
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