Sunday, March 29, 2015

नन्‍हीं नटि‍नी



लड़की
आसमान पर चलती है
कदम साधे
पतले होंठों को भींचे
नाजुक हाथों में थाम
वजन से ति‍गु्ना भारी
बांस की बल्‍ली 
संतुलन बनाकर
वो पतली सी रस्‍सी पर
चलती नहीं
सरपट दौड़ती है

उसकी नजर है
पास जुटे मजमे पर
कि‍सकी आंखों में है दया
कौन नि‍कालेगा
अपनी जेब से कुछ रूपैया
उसकी मां का कटोरा
जब कुछ भर जाएगा
वो तब आसमान से
जमीन पर आएगी
पीठ से चि‍पके पेट पर
अब कुछ चबैना जाएगा

पांच साल की बच्‍ची से
बरस-बरस भर छोटे
नन्‍हें-मुन्‍ने चार बच्‍चों का
अब पेट भर पाएगा
ओ नन्‍हीं लड़की
तेरी तकदीर में नहीं
नीम की टहनी पर
लगे झूले की पेंगे भर
आसमान पर उड़ना

तेरे लि‍ए
आसमान से धरती जि‍तनी
दूर है
स्‍कूल की पीली इमारत 
चाहती है, पर जानती है वो भी
स्‍कूल नहीं
जीवन की पाठशाला है जरूरी 
बांस, रस्‍सी और भूख के धागे से
बंधी है कि‍स्‍मत तेरी

तुझे तो बस
संतुलन साधना है
सर पर लोटे पर लोटे
और साईकि‍ल के पहि‍यों पर
कदम साध कर
हर गांव-शहर में घूमकर
कुछ पैसे बनाना है
और पतली रस्‍सी पर चल
नटिनी बन
बचपन से जवानी का
सफ़र गुजारना है।


4 comments:

कविता रावत said...

अपने और अपनों की पेट की खातिर क्या-क्या न करना पड़ता है ..उम्र से कई ज्यादा बड़े हो जाते हैं जब पेट का सवाल हो ....मर्मस्पर्शी रचना

कविता रावत said...

अपने और अपनों की पेट की खातिर क्या-क्या न करना पड़ता है ..उम्र से कई ज्यादा बड़े हो जाते हैं जब पेट का सवाल हो ....मर्मस्पर्शी रचना

दिगम्बर नासवा said...

पापी पेट जो न कराये कम है ... बचपन की गलियों में खेलने वाली उम्र में ये सब करना पढता है और हम कहते हैं उम्मती कर रहे हैं ... पता नहीं कौन सी ...

dr.sunil k. "Zafar " said...

मज़बूरी क्या नही करती हैं..मगर जो एक बच्चे से उसका बचपन छीन ले ऐसी मज़बूरी हैं कसूर हम सबका हैं..
उम्दा रचना.