Sunday, February 22, 2015

मुट्ठि‍यां खुली हैं.....


जि‍न दि‍नों
बंद रहती थी मेरी मुट्ठी
नीला आसमान
खाली-खाली था

सुगबुगाते सपने
फड़फड़ाते थे पर
पंछि‍यों की तरह
परवाज को आतुर

मैं डरती थी अब
ऊंची उड़ान से
सुंदर सपनों के
बि‍हान से

अच्‍छा लगता था
आकाश पर
सफ़ेद बादलों का बसेरा
सतरंगी कि‍रणों का डेरा

और जोर से
भींचती थी मुट्ठि‍यां
सब कुछ
यूं ही रहे, यथावत

अाज देखा
बड़े चमकीले सि‍तारों से
सजा है आसमान
हैं झि‍लमि‍ल करते
चांद - तारे

पाया मैंने
मुट्ठि‍यां खुली हैं
दोनों हाथ खाली
और भरा-भरा है आसमान ....।

5 comments:

dr.sunil k. "Zafar " said...

जि‍न दि‍नों
बंद रहती थी मेरी मुट्ठी
नीला आसमान
खाली-खाली था

बहुत बहुत सूंदर..


http://themissedbeat.blogspot.in/?m=1

दिगम्बर नासवा said...

ऊंची उड़ान हिम्मत के साथ हमेशा खुला आसमान देती है ...
अच्छी रचना ...

dr.mahendrag said...

सुन्दर रचना

Dr.NISHA MAHARANA said...

gahre bhaw ......

nayee dunia said...

बहुत सुन्दर........