Wednesday, January 7, 2015

बहुत अजनबी लगते हो तुम.....


कई बार
जब तुम्‍हारे कहे
खुरदुरे शब्‍दों से
कटने लगती है
प्रेम की देह
और कुछ दाग बदन पर
यूं उग आते हैं अचानक
जैसे
कोई चिंगारी छि‍टकी हो
आग से
और चि‍हुंक पड़े हों
हम अनजाने
ऐसे समय में
बहुत अजनबी लगते हो तुम.....

3 comments:

Sangh sheel said...

nice

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

सार्थक भावप्रणव रचना।

Nitish Tiwary said...

बहुत सुंदर प्रस्तुति, मेरे ब्लॉग पर भी आपका स्वागत है.
iwillrocknow.blogspot.in