जिंदगी की भागदौड़ के बीच कई बार अनुभव किया कि मेरा भी अपना एकांत है, और जिसे प्रगट करना निजी आवश्यकता।इस हेतु जो साध्य,-साधन मेरे साथ थे, जो शिल्प गढ़े थे और जो वर्जनाएं सामने थीं, जब ये सब अपर्याप्त लगे और मन के भाव कागज में उतरने लगे, तो उन्हें समेटने की जरूरत हुई।
बिखरे पन्नों को समेटकर बोधि प्रकाशन , जयपुर ने इसे पुस्तकाकार दिया और आवरण चित्र बनाया है इरा टॉक ने, जो ''नदी को सोचने दो'' के रूप में सामने आया।
काव्य-संग्रह के रूप में यह मेरा पहला प्रयास है। इसे आप सभी के आशीष और स्नेह की आवश्यकता है। मित्रों और स्वजनों का आग्रह है कि इसके प्रकाशन के अवसर को समानधर्मा गुणी जनों के सम्मिलन से मनाए जाए।
आपकी उपस्थिति सादर प्रार्थनीय है। विश्वास है , इससे आयोजन को समारोह की गरिमा प्राप्त होगी।
दिनांक - 18 जनवरी 2015
आयोजन स्थल - वन सभागार,
मेकॉन चौराहा के सामने, रांची (झारखंड)
समय - अपराह्रन तीन बजे से
आयोजन स्थल - वन सभागार,
मेकॉन चौराहा के सामने, रांची (झारखंड)
समय - अपराह्रन तीन बजे से
5 comments:
रशिम शर्मा जी आप की इस कविता संग्रह के प्रकाशन पर आप को हार्दिक शुभकामनाएँ और बहुत बहुत बधाई ! सादर ....
संग्रह के प्रकाशन पर .... हार्दिक शुभकामनाएँ
शुभकामनाएं
आप रांची की है, पता नहीं था .... हार्दिक बधाई नई पुस्तक के लिए .....
Thank u neeraj ji...aap aate to achha lagta. Aamntarn isliye yaha post kiya tha ki yaha ke log dekh sake. Akhbar me bhi khabr thi lokarpan ki.
Achha laga ye jankar ki aap bhi ranchi ke hai.
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