बुझते चरागों की गंध
हवाओं में तैरती है
अासमान की
कालिख भरी नदी में
धुंधलाए सितारों की
एक कश्ती डोलती है
ये खामोश रात बार-बार ,
कुछ कहने को
मुंह खोलती है
गली की आखिरी छोर पर
झुलसे हुए
दरख़्त की कोटर में
एक टूटे पंख वाली चिड़िया
नाकामी एवं बेचैनी के बीच
रह-रह कर बोलती है।
एक जद्दोजहद भरे दिन के बाद
अब कोई, बेहिस सोना चाहता है
बेजान सा बुझा दिल,
अब, सब खोना चाहता है
थकी हुई शाम से
मैं उसी का चेहरा
मांग लाई हूं
बेपढ़ी सी
जि़स्त के रिसालों को
वक्त की अलगनी पर
टांग आई हूं
उनके बेरंग सफ़ों से दूर
निस्बतों की तिजारतों से
क्या पाया, क्या गंवाया
तमाम
नुकसान-नफों से दूर
अमावस की काली चादर तान
अब कोई, बेहिस सोना चाहता है
बेजान सा बुझा दिल,
अब, सब खोना चाहता है।
तस्वीर..बुझते लौ को कैद किया मेरे मोबाईल फोन ने
अब कोई, बेहिस सोना चाहता है
ReplyDeleteबेजान सा बुझा दिल,
अब, सब खोना चाहता है।--vakaiee me acchha laga . thanks.
कसावट भरी पंक्तियों ने मजबूर किया की पढ़ता ही रहूँ
ReplyDeleteकसावट भरी पंक्तियों ने मजबूर किया की पढ़ता ही रहूँ
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (12-11-2014) को "नानक दुखिया सब संसारा ,सुखिया सोई जो नाम अधारा " चर्चामंच-1795 पर भी होगी।
--
चर्चा मंच के सभी पाठकों को
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
भाव पूर्ण सुन्दर रचना , बहुत सुन्दर
ReplyDeleteयह सत्य है जीवन का।पर एक वक़्त ऐसा आता है जब हम सब कुछ छोड़ कर सोना चाहते हैं चिर निद्रा में।
ReplyDeleteउनके बेरंग सफ़ों से दूर
ReplyDeleteनिस्बतों की तिजारतों से
क्या पाया, क्या गंवाया
तमाम
नुकसान-नफों से दूर
....बहुत सुन्दर भाव ...
bhaawpurn bas main padhti gyi
ReplyDeleteअब कोई, बेहिस सोना चाहता है
ReplyDeleteबेजान सा बुझा दिल,
अब, सब खोना चाहता है
खोना पाना खोकर पाना जीवन भर चलता रहता हैं।
http://savanxxx.blogspot.in
मनमोहक प्रस्तुति :)
ReplyDeleteभावपूर्ण मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति...बधाई !!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...उम्दा और बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteनयी पोस्ट@आंधियाँ भी चले और दिया भी जले
sundar ,,,,,,photo bhi aur bhaw bhi ...
ReplyDeleteAntareevi kavita.....
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