Monday, November 10, 2014

कोई सोना चाहता है


बुझते चरागों की गंध
हवाओं में तैरती है
अासमान की
कालि‍ख भरी नदी में
धुंधलाए सि‍तारों की
एक कश्‍ती डोलती है
ये खामोश रात बार-बार ,
कुछ कहने को
मुंह खोलती है
गली की आखि‍री छोर पर
झुलसे हुए
दरख्‍़त की कोटर में
एक टूटे पंख वाली चि‍ड़ि‍या
नाकामी एवं बेचैनी के बीच
रह-रह कर बोलती है।

एक  जद्दोजहद भरे दि‍न के बाद
अब कोई, बेहि‍स सोना चाहता है
बेजान सा बुझा दि‍ल,
अब, सब खोना चाहता है

थकी हुई शाम से
मैं उसी का चेहरा
मांग लाई हूं
बेपढ़ी सी
जि़स्‍त के रि‍सालों को
वक्‍त की अलगनी पर
टांग आई हूं
उनके बेरंग सफ़ों से दूर
नि‍स्‍बतों की ति‍जारतों से
क्‍या पाया, क्‍या गंवाया
तमाम
नुकसान-नफों से दूर

अमावस की काली चादर तान
अब कोई, बेहि‍स सोना चाहता है
बेजान सा बुझा दि‍ल,
अब, सब खोना चाहता है।


तस्‍वीर..बुझते लौ को कैद कि‍या मेरे मोबाईल फोन ने

14 comments:

  1. अब कोई, बेहि‍स सोना चाहता है
    बेजान सा बुझा दि‍ल,
    अब, सब खोना चाहता है।--vakaiee me acchha laga . thanks.

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  2. कसावट भरी पंक्तियों ने मजबूर किया की पढ़ता ही रहूँ

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  3. कसावट भरी पंक्तियों ने मजबूर किया की पढ़ता ही रहूँ

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  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (12-11-2014) को "नानक दुखिया सब संसारा ,सुखिया सोई जो नाम अधारा " चर्चामंच-1795 पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच के सभी पाठकों को
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  5. भाव पूर्ण सुन्दर रचना , बहुत सुन्दर

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  6. यह सत्य है जीवन का।पर एक वक़्त ऐसा आता है जब हम सब कुछ छोड़ कर सोना चाहते हैं चिर निद्रा में।

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  7. उनके बेरंग सफ़ों से दूर
    नि‍स्‍बतों की ति‍जारतों से
    क्‍या पाया, क्‍या गंवाया
    तमाम
    नुकसान-नफों से दूर
    ....बहुत सुन्दर भाव ...

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  8. अब कोई, बेहि‍स सोना चाहता है
    बेजान सा बुझा दि‍ल,
    अब, सब खोना चाहता है
    खोना पाना खोकर पाना जीवन भर चलता रहता हैं।
    http://savanxxx.blogspot.in

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  9. मनमोहक प्रस्तुति :)

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  10. भावपूर्ण मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति...बधाई !!

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  11. बहुत सुन्दर...उम्दा और बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई...
    नयी पोस्ट@आंधियाँ भी चले और दिया भी जले

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