Sunday, November 16, 2014

'दि‍रखे' पर रख आई मन...


शीत उड़ेलती शाम......पेड़ की फुनगि‍यों पर कुहासे ने लपेट दी सफेद चादर...दूर सूरज डूबने के बाद आकाश में इतने रंग टंगे हैं जैसे एक बच्‍चे के हाथ में खाली कैनवास और सारे रंग हों..वो एक के बाद एक रंग से कैनवास भरता जा रहा है...और प्रकृति‍ मंत्रमुग्‍ध है इस चि‍त्रकारी से

ठंड...बदन में घुसती चली आ रही है..गरम कपड़ों की दीवार में सुराख करके....शाम इतरा रही है...अपनी खूबसूरती और बदलते मौसम से अकबकाए लोगों को देखकर

मन...मेरा मन....जब से ढूंढ रही हूं..साथ नहीं मेरे...जैसे कि‍सी घर के दि‍रखे (ताखे )पर रखकर भूल गई हूं, और उसके बि‍ना कुछ भी नहीं है पास....

तुम हो, सब है....बस मन भूल आई हूं कहीं...

ये उचाट सा दि‍न और बेतरह ठंडी शाम....तुम्‍हारे दस्‍ताने के नीचे छुपी लकीरों को एक बार गौर से देखो न....कुछ रेखाएं आज बदल तो नहीं गई ........


तस्‍वीर खूबसूरत शाम और मेरे कैमरे की

2 comments:

  1. खूबसूरत शब्द और उससे ज्यादा सुन्दर कैमरे का कमाल ...

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  2. sundar chitr ke sath -sath bhavpurn chitrn bhi ...

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