Wednesday, November 5, 2014

पश्‍मीने सी, वफाएं तुम्‍हारी


पश्‍मीने के रंगों  सी नरम-गरम हैं अदाएं तुम्‍हारी ,
वादि‍यों से जैसे चलकर आ रही होशुआएं तुम्‍हारी  !!

तेरा ये पैरहन जो मेरे बदन के गि‍र्द लि‍पटा सा है ,
प्‍यार के रेशों में गुँथी ज्यूँ बेशुमार दुआएं तुम्‍हारी !!

तवील रातें ढलतीं हैं न लौ जाती हैं इन कंदीलों से ,
बस हवा आती है मेरी ओर, गोया हों सदाएं तुम्‍हारी !!
बादे-सबा भी कशमकश में होती हैं अलसुबह यूँ ही, 
खुश्‍बू फूलों से चुराएं ,मुझसे ले जाएँ बलाएं तुम्‍हारी !!

मन तो रौशन हैऔर रूह पर रूमानि‍यत सी तारी है,
प्‍यार के धागों में गूंथ ली हैं मैंने सबकथाएं तुम्‍हारी !!

मन बावरा सा बहकता हैबदन मुकाबि‍ल है फूलों से,   
नवम्बर की इस ठंड ने ओढ ली हैं  वफाएं  तुम्‍हारी  !!


चाँद के नीचे हर रात आकाशदीप सी जलबुझी हूँ मैं ,
तुम लौट के तो आओमैं तय करूंगी सजाएं तुम्‍हारी !!

तस्‍वीर- साभार गूगल

8 comments:

  1. वाह....
    कमाल की ग़ज़ल....

    दाद कबूल करें !

    अनु

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  2. वाह वाह
    मजा आ गया पढ़ के

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  3. बस हवा आती है मेरी ओर, गोया हों सदाएं तुम्‍हारी !!…… ................ तुम लौट के तो आओ, मैं तय करूंगी सजाएं तुम्‍हारी !!
    सुन्दर ग़ज़ल रश्मि जी ,

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  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।

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  5. वाह,पशमीना सा प्यार तुम्हारा ओढे हूं कांधों पर--

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  6. लाजवाब भावाव्यक्ति है ...

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