Tuesday, September 23, 2014

दूर जाते तुम....



डायरी का आखि‍री 
सफ़ा
मलि‍न पड़ते धागे
और
करीब आते दि‍खते
मगर
दूर जाते तुम

रहना तय था
बि‍छुड़ना भी
बस 
वक्‍त से नहीं कि‍या
कभी
कोई करार

अब उसने खोली है
अपनी
हि‍साब वाली डायरी
तुम
मुंह छुपाए फि‍रते हो
मैं नजरें बचाए

कौन पूछे अब 
किसे
ठहराया गया कुसूरवार
जो आता दि‍खा था
वो ही
जाता पाया गया
वक्‍त
तू ही नि‍कला बेईमान....।

तस्‍वीर...उम्र सी लंबी सड़क और मेरे कैमरे की 

13 comments:

कविता रावत said...

बहुत सुन्दर तस्वीर के साथ सुन्दर रचना

कविता रावत said...

बहुत सुन्दर तस्वीर के साथ सुन्दर रचना

dr.mahendrag said...

इन हालात में ,वक्त के अलावा दोष दें भी किसे?सुन्दर भावपूर्ण पंक्तियाँ,

Anavrit said...

अब उसने खोली है
अपनी
हि‍साब वाली डायरी
तुम
मुंह छुपाए फि‍रते हो
मैं नजरें बचाए,...
बहुत सुन्दर बहुत सरल भाव और वक्त का बेईमान खेल अद्भुत । अच्छी लगी आभार

nayee dunia said...

बहुत सुन्दर

Arvind Mishra said...

भावपूर्ण

दिगम्बर नासवा said...

रहना तय था
बि‍छुड़ना भी
बस
वक्‍त से नहीं कि‍या
कभी
कोई करार ...

वक्त से कोई करार हो ही कहाँ पाता है ... हर कोई उससे आगे निकल जाने की सोचता है ...

Amit Chandra said...

खुबसुरत रचना के लिये आभार.......

सादर..

संजय भास्‍कर said...

बेहद खूबसूरत पंक्तियाँ।

Onkar said...

सुंदर चित्र और सुंदर कविता

Unknown said...

Bahut sunder panktiyaan..sunder rachna ..sunder chitr !!

Dr.NISHA MAHARANA said...

रहना तय था
बि‍छुड़ना भी
बस
वक्‍त से नहीं कि‍या
कभी
कोई करार...ati sundar ...

कुमकुम त्रिपाठी said...

वाह!सजीव लेखन