डायरी का आखिरी
सफ़ा
मलिन पड़ते धागे
और
करीब आते दिखते
मगर
दूर जाते तुम
रहना तय था
बिछुड़ना भी
बस
वक्त से नहीं किया
कभी
कोई करार
अब उसने खोली है
अपनी
हिसाब वाली डायरी
तुम
मुंह छुपाए फिरते हो
मैं नजरें बचाए
कौन पूछे अब
किसे
ठहराया गया कुसूरवार
जो आता दिखा था
वो ही
जाता पाया गया
वक्त
तू ही निकला बेईमान....।
तस्वीर...उम्र सी लंबी सड़क और मेरे कैमरे की
13 comments:
बहुत सुन्दर तस्वीर के साथ सुन्दर रचना
बहुत सुन्दर तस्वीर के साथ सुन्दर रचना
इन हालात में ,वक्त के अलावा दोष दें भी किसे?सुन्दर भावपूर्ण पंक्तियाँ,
अब उसने खोली है
अपनी
हिसाब वाली डायरी
तुम
मुंह छुपाए फिरते हो
मैं नजरें बचाए,...
बहुत सुन्दर बहुत सरल भाव और वक्त का बेईमान खेल अद्भुत । अच्छी लगी आभार
बहुत सुन्दर
भावपूर्ण
रहना तय था
बिछुड़ना भी
बस
वक्त से नहीं किया
कभी
कोई करार ...
वक्त से कोई करार हो ही कहाँ पाता है ... हर कोई उससे आगे निकल जाने की सोचता है ...
खुबसुरत रचना के लिये आभार.......
सादर..
बेहद खूबसूरत पंक्तियाँ।
सुंदर चित्र और सुंदर कविता
Bahut sunder panktiyaan..sunder rachna ..sunder chitr !!
रहना तय था
बिछुड़ना भी
बस
वक्त से नहीं किया
कभी
कोई करार...ati sundar ...
वाह!सजीव लेखन
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