Monday, August 18, 2014

हे कृष्‍ण......

सभी मि‍त्रों को जन्‍माष्‍टमी की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं.....



हे कृष्‍ण,

तुम्‍हारे अधर-पाटल पर
अब भी
लगी होगी बाँसुरिया
और मादक स्‍वर लहरी से
होंगी अब भी बेसुध गोपियाँ

हे माधव,

बरस बीते, न आए तुम
सूना है वृंदावन
सूना है तुम्‍हारी
राधा का मन
मेरे मानसमंदि‍र के देव
अश्रुसि‍क्‍त है
प्रतीक्षारत है ये नयन

हे केशव ,

भीजने दो आज अपना
पीला पटका
मेरे प्रेमाश्रुओं को दो
‘कौस्तुभ-मणि’ सा नाम
कह दो अपनी वंशी से वो उच्‍चारे
वेणुलहरी में
बस मेरा ही नाम

हे ऋषिकेश,

तेरे आगे इस
दुनिया में झाँक कर
मैंने कहाँ देखा
हे कनु,
कनुप्रिया कहती है
दुनिया मुझे
मैंने तो जब देखा,
जहां देखा, डूबी रही ,
कालिंदी सी तेरी आँखों में

हे अच्युत ,

मैं रहती हूं नि‍श-दि‍न तुममें
तुम समाहि‍त मुझमें
फि‍र भी होती है चाह कभी कि‍
मुक्ति दो मुझे
हर लो रुक्मिणी की तरह
छुपा लो
अपने प्रेम की पाँखों में


2 comments:

Ankur Jain said...

सुंदर रचना...जन्माष्टमी की शुभकामनाएं।।।

Unknown said...

बहुत सुन्दर लिखा है , जनमाष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं ।