ओ मेरे 'मानसून पांखी'
हर दिन भोर में
आंख खुलते ही
सुनती हूं तेरी पिउ-पिउ
और जानती हूँ
प्यास की समाप्ति का
मौसम है ये
तू साथ अपने
बूंदे लेकर आया है
मेघों को संग लाया है
तेरी पिउ-पिउ सुन
मेरा भी जी भर आया है
ओ मेरे मानसून पांखी
स्वाति बूंद की आस
तुझे भी है मुझे भी
तू बुझा ले
अपने मौसमों की प्यास
मुझे भी मिलेगा चैन
मिटेगी,जन्मों की प्याुस
जब होगा मिलन पिया से
इन्हीं ख्वाहिशों में
इस बरस बारिशों में
ओ मेरे मानसून पा्ंखी
जब तेरे पंखों में
घुल जाएं पावस के रंग
तब उड़ जाना तू
दूर पिया के देस
उन तक ले जाना तू
मेरी बरसती आँखों के संदेस....
तस्वीर...साभार गूगल
2 comments:
ब्लॉग बुलेटिन आज की बुलेटिन, स्वामी विवेकानंद जी की ११२ वीं पुण्यतिथि , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
बहुत खूब
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