पता है तुम्हें...असि घाट, गंगा और असि नदी का संगम स्थल है। हालांकि अब असि
नदी विलुप्त हो गई है...बस गंगा ही गंगा है..जैसे मेरा अस्तित्व तुममें विलुप्त हो गया है, और मैं तुममें जिंदा हूं...एक नाम है मेरा...तुम्हें भी याद होगा, जैसे असि नदी को लोग याद रखते हैं.....असि घाट के नाम से....
असि घाट को काशी का हरिद्वार क्षेत्र माना गया है। काशीखंड के अनुसार संसार के सभी तीर्थ इसके सोलहवें भाग के बराबर भी नहीं है। इसलिए असि या अस्सी घाट पर स्नान करने से सभी तीर्थों में स्नान का फल मिलता है।
तो आओ..महाराज बनारस के बनाए इस घाट पर...जहां तुलसीदास ने 'रामचिरतमानस' जैसे ग्रंथ की रचना की, और यहां इस घाट पर देह भी त्यागा था उन्होंने.......एक डुबकी हम भी लगा आएं। यूं भी सबसे अंतिम घाट है ये असि घाट...इसके बाद है दूर-दूर तक है नदी का उफनता पानी....
दो नदियों का संगम स्थल असि घाट.......हमारे संगम का भी गवाह बनेगा....फिर कौन किसमें विलीन हुआ...ये इतिहास बताएगा....
मैं और गंगा घाट- 4
my photography
3 comments:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (27-07-2014) को "संघर्ष का कथानक:जीवन का उद्देश्य" (चर्चा मंच-1687) पर भी होगी।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
अतिउत्तम
अस्सी घाट की महिमा को लिखा है आपने .. बहुत सुन्दर ...
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