Wednesday, July 23, 2014

कि‍स घाट मि‍लेगी मुक्‍ति‍......


बड़ी संकरी सी गली से होकर जाता है केदार घाट का रास्‍ता...ठीक तुम्‍हारे प्रेम गली की तरह.....दूर-दूर तक न हो कोई जहां.....बस तुम...तुम

ऊंची-ऊंची सीढ़ि‍यां है घाट में उतरने की। बरसात के बाद फि‍सलन से भरी....नीचे कई नाव बंधे हैं....गंगा की सैर को...काशी के दर्शन को।

ब्रह्मवैवर्तपुराण के अनुसार केदार घाट को आदि मणिकर्णिका क्षेत्र के अन्तर्गत माना गया है, जहाँ प्राण त्यागने से भैरवी यातना से मुक्ति मिल जाती है और व्यक्ति मोक्ष को प्राप्त करता है।

तुम्‍हें पता है ये भैरवी-यातना कैसी होती है। शिव ही भैरव हैं और मौत के अंति‍म पलों में कई जन्‍मों के पल को पूरी तीव्रता के साथ जी लेता है इंसान। जो कुछ भी बुरा होना हो वो कई जन्‍मों का दर्द एक पल में ही मि‍ल जाए ताकि‍ अगले जन्‍म में ये कष्‍ट न भोगना पड़े।

और जो कोई जीते-जी भैरवी यातना भोग रहा हो तो....कई जन्‍मों से कोई चाह लि‍ए वो जन्‍मता है और फि‍र मर जाता है....मगर वो चाहत उसके अंदर अब भी बरकरार है, इस जन्‍म भी नहीं पूरी होने वाली।

अब बोलो...जीवि‍त इंसान को इस भैरवी यातना से कौन मुक्‍ति‍ देगा......गंगा के कि‍स घाट में जाने से मि‍लेगी मुक्‍ति‍....बोलो तो...

मैं और गंगा घाट-3

my photography 

11 comments:

shashi purwar said...

sundar prastuti

dr.mahendrag said...

सुन्दर , आगे चलती रहिये

प्रतिभा सक्सेना said...

निरुत्तर हैं हम !

सुशील कुमार जोशी said...

सुंदर ।

HARSHVARDHAN said...

आपकी पोस्ट को ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन 3 महान विभूतियाँ और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। हमारा मान बढ़ाने के लिए कृपया एक बार अवश्य पधारे,,, सादर।।

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

उम्दा और बेहतरीन ...आपको बहुत बहुत बधाई...
नयी पोस्ट@मुकेश के जन्मदिन पर.

dr.sunil k. "Zafar " said...

जीवन बस बहते जाना हैं इसे मुक्ति नही मोक्ष मिलता हें....
भावपूर्ण रचना।

Parmeshwari Choudhary said...

जीवित रहते मुक्ति का रास्ता तो अपने अंतर से ही निकलता है -कभी क्षमा से,कभी संतोष से तो कभी आगे बढ़ जाने से। आपने लिखा बहुत अच्छा है।

Pratibha Verma said...

बेहतरीन...

Amit Chandra said...

बेहतरीन...

Unknown said...

बेहतरीन