Tuesday, July 1, 2014

'मैंगरोव' और मैं

धुआं-धुआं सा समां
समंदर में है रेत
या रेत का है समंदर
कैसे उगते हो तुम
'मैंगरोव'
पानी से दूर, पानी के पास

चांदनी रात में
समुद्र से नि‍कलती है नदी
सींचती है तुम्‍हें
लौट जाती है फि‍र
वि‍शाल सागर में

ओ महासागर
नीली लहरों के ऊपर
है काले बादल
क्‍या इसलि‍ए तुम
'कालापानी' कहलाए

'मैंगरोव', तुममें है शक्‍ति‍
पुर्नजीवन की,
मेरी जड़ें भी उखड़ी सी हैं
मुझे रोप दो
इसी समंदर वाली
नदी के तट पर

कभी एक दि‍न
कोई आएगा
पावों के नि‍शान तलाशते
इस सुंदर द्वीप-समूह में
अपनी उम्‍मीदों सा
हरा समंदर लेकर.......

तस्‍वीर.... अंडमान का समुद्र कि‍नारा और मैंगरोव वृक्ष



3 comments:

प्रतिभा सक्सेना said...

जब कभी कालापानी बने इन द्वीपों में सौन्दर्यन्वेषी पहुँचते है,इनका सहज-सुन्दर रूप प्रत्यक्ष हो जाता है ,देखनेवाली आँख और संवेदनशील मन भी तो चाहिए न !

Rajesh Kumari said...

बहुत सुन्दर लिखा बधाई आपको रश्मि जी. चित्र को देख कर पुरानी यादें ताज़ा हो गई अंडमान के अतिरिक्त केरला में मेंग्रोव फारेस्ट में सेलिंग करने का अनुभव आज भी याद करने पर रोमांचित करता है|

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

उम्दा रचना और बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई...
नयी पोस्ट@दर्द दिलों के
नयी पोस्ट@बड़ी दूर से आये हैं