Thursday, May 8, 2014

बोलो न....स्‍वीकार है तुम्‍हें ....


धोरों खि‍ला कास – फूल”- (भाग –VIII)
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झरना....बहती रहना...कभी मेरे आंखों के आगे....कभी मेरे घर के सामने से लहराकर नि‍कलना...कभी मेरे घर के पि‍छवाड़े में बहना....अपनी कलकल ध्‍वनि‍ के साथ...

मैं हर पल महसूस करना चाहता हूं....तुम्‍हारे अस्‍ति‍त्‍व को...तुम्‍हारे स्‍वच्‍छ मन के नि‍र्झर झरने को।

बहुत भावुक हो कह रहे थे तुम मुझसे ये बातें.....छलछलाई आंखें ताक रही थी नीले आसमान को........और अपने घुटनों पर ठुड़डी टि‍काए मैं देख रही थी तुम्‍हारा चेहरा.......अनवरत.....गर झांकते उन पलों में मेरी आंखों में तुम....तो दि‍ख जाता प्‍यार का लहराता समंदर तुम्‍हें

अचानक से मुड़े तुम....कहा......मैं बहुत प्‍यासा हूं....प्रेम की प्‍यास जाने कि‍स जन्‍म से साथ है मेरे...... कब तृप्‍ति‍ मि‍लेगी मुझे....कब मुक्‍त होऊंगा मैं अपनी जन्‍मों की प्‍यास से....पता नहीं

फि‍र यकायक कह उठे....मैं सच में डूबा हूं प्रेम में...और मुझे लगता है मेरी प्‍यास कभी कम नहीं होगी। तपती रेत सा हूं मैं......तुम्‍हारा प्रेम बूंद बनकर मि‍ला उस अतृप्‍ति‍ को लेकर जाने कि‍तने और जन्‍म लेने होंगे....और कि‍तना इंतजार करना होगा...

और जो तुम निर्झरा बन बरसाती रही प्‍यार, तो ये वादा है......मैं अपना ये जीवन और आने वाला हर जन्‍म तुम्‍हें समर्पित कर दूंगा। ये वचन है मेरा........क्‍योंकि‍ जो भाव तुम्‍हें देखकर मेरे मन में आते हैं....वो अवर्णनीय है....ऐसा मुझे कभी नहीं लगा....

लगता है मुझे....सदि‍यों से मुझे तुम्‍हारी ही थी तलाश..... बोलो न....स्‍वीकार है तुम्‍हें मेरा प्‍यार....

मैं चुप...देख रही हूं तुम्‍हारा चेहरा....याद करने की कोशि‍श कर रही हूं....क्‍या तुम ही थे वो.....जो ख्‍वाबों में आते थे.......
my photography 

4 comments:

Mithilesh dubey said...

अभिव्यक्ति का अच्छा ताना बाना बुना है आपने। अगली कड़ी का इंतजार।

सुशील कुमार जोशी said...

बढ़िया चल रही है कहाँनी ।

Unknown said...

आपकी इस उत्कृष्ट अभिव्यक्ति की चर्चा कल रविवार (11-05-2014) को ''ये प्यार सा रिश्ता'' (चर्चा मंच 1609) पर भी होगी
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आप ज़रूर इस ब्लॉग पे नज़र डालें
सादर

Onkar said...

सुंदर प्रस्तुति