उसने खींच दी
लक्ष्मण रेखा
इस हिदायत के साथ
कि मेरा प्रेम
एक परिधि में पनपता है
जीता है
और दायरे ही इसके
खाद-पानी हैं
जो कभी
लांघी लकीर
तो समझ लेना
एक अग्िनपरीक्षा और होगी
मैंने मान ली
हर बात क्योंकि
आकंठ डूबी थी
उसके प्रेम में
लगा....बहुत बड़ी है परिधि
क्यों लांघना इसे
मैं तो हथेली में तेरे
छुप जाना चाहती हूं
तुम्हारी पलकों में
बस जाना चाहती हूं....
अब हम थे दो खुश जोड़े
प्रेमिल से, प्रेम में डूबे
मैं समर्पित शुतरमुर्ग
और तुम्हें अपने
मजबूत घेरे का गुमान
मैं बन गई
तुम्हारे प्यार के आसमान का
चमकता चांद
वक्त गुजरा
यकीन के पक्के धागे से
रिश्ता लगा ज्यों फौलाद
आया ख्याल
एक बार लांघी जाए परिधि
कि सुना है
हर रिश्ते से मजबूत होता है
प्यार का रिश्ता
तो क्यों न
खुलकर ली जाए
एक बार सांस........
बस
यहीं... जा के समझ आया
औरत-मर्द के प्यार का फर्क
स्त्री हो कूपमंडूक
तो सर माथे बिठाए पुरूष
और जो
ले सांस खुलकर कभी
तो एक-एक सांस का हिसाब देते
उम्र बीत जाए
तो आओ न मिलकर
हम एक ऐसी परिधि बनाएं
जिसकी शर्त हो कि
इसे दोनों लांघ न पाए
अब शर्त हो बराबर
सजाएं भी हो एक
या फिर
तुम उड़ो मुक्त गगन में
मेरे लिए भी हो..सारा आकाश
तस्वीर.......मुक्त गगन में उड़ते परिंदे
5 comments:
बंधन कैसे कैसे.... ? कुछ नज़र आते हैं कुछ नहीं ....
bandhan ho ya paridhi ek baar bahar nikal kar to dikhlaiye kaise prem hawa ban ud jata hai aur sandehon ke naag fan utha lete hain ..
हर रिश्ते से मजबूत होता है
प्यार का रिश्ता
सुन्दर अभिव्यक्ति रश्मिजी , बधाई
एक बंधन मुक्त संसार ....एक ऊंची उड़ान
तुम उड़ो मुक्त गगन में
मेरे लिए भी हो..सारा आकाश
होना यही चाहिये। सुंदर सुलझी प्रस्तुति।
Post a Comment