Sunday, April 6, 2014

आसमान की कि‍ताब में....


छोड़ दि‍या उसे मैंने
जि‍ससे
सबसे ज्‍यादा थी
मोहब्‍बत हमें

दरअसल
प्‍यार कहता है
झुक जाओ
महबूब की कदमों में
ये बंदगी है
गुलामी नहीं

मगर
क्‍या हो, जब
ताड़ सी ऐंठ भरी है
प्‍यार वाले
हि‍स्‍से में

झुकता है कोई
तो फौरन
दूसरा
सतर खड़ा हो जाता है

इसलि‍ए
कर दि‍या बेदखल
उसे ही
दि‍ल की जागीर से

अब
उन आंखों में
भरी है हैरत
और
इन आंखों में
बेपनाह मोहब्‍बत

जाओ तुम अब
अपनी राह
हम आसमान की कि‍ताब में
कुछ नए हर्फ़
चस्‍पां करें.........

my photography

6 comments:

प्रतिभा सक्सेना said...

बिलकुल सही !

VIJAY KUMAR VERMA said...

बहुत सुंदर अभिव्यक्ति !!!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (08-04-2014) को "सबसे है ज्‍यादा मोहब्‍बत" (चर्चा मंच-1576) पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
श्रीराम नवमी की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

Vaanbhatt said...

बहुत खूब...प्यार झुकता नहीं...और प्यार के लिए झुकना चाहिए भी नहीं...

संजय भास्‍कर said...

बहुत ही सरल, सार्थक अभिव्यक्ति।

आशीष अवस्थी said...

शानदार कृति , आदरणीय रश्मि जी धन्यवाद व स्वागत हैं मेरे लिंक पे !
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